निर्मला कैसे करेंगी देश का भला

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में निर्मला सीतारमण को वित्त मंत्री बनाया है। निर्मला सीतारमण ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से अर्थनीति की पढ़ाई की है। नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में निर्मला सीतारमण देश की पहली महिला रक्षामंत्री बनीं थीं। अब देश की अर्थव्यवस्था की जि़म्मेदारी निर्मला सीतारमण के कंधों पर है। इन उपलब्धियों के साथ ही अब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सामने अर्थव्यवस्था को लेकर कई बड़ी चुनौतियां हैं। सबसे पहली चुनौती बेरोजग़ारी की है। युवाओं के लिए जिस रफ्तार से रोजग़ार बढऩे चाहिए वो नहीं बढ़ रहे हैं। 2013-14 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि युवाओं के लिए हर साल 1-2 करोड़ नई नौकरियां लाएंगे, लेकिन हमारे पास कोई ऐसे सबूत नहीं हैं कि इस रफ्तार से नई नौकरियां आ रही हैं।

एक समय जिन क्षेत्रों में नई नौकरियां आ रही थीं वहां भी इनका आना कम हो गया। एक है आईटी सेक्टर, दूसरा टेलीकॉम सेक्टर। सरका ने आंकडा भी वासप ले लिया था, अब फिर आ गया है। वो भी काफी विवादित है। नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के लीक हुए डेटा के मुताबिक 45 सालों में बेरोजग़ारी अपने उच्चतम स्तर पर है। निवेश बढ़ाने पर जोर देना होगा। निजी क्षेत्र निवेश नहीं कर रहे हैं। सरकारी निवेश तो एक चीज़ है लेकिन निजी क्षेत्रों के निवेश को बढ़ाना भी निर्मला सीतारमण के सामने बड़ी चुनौती होगी। जीएसटी एक और चुनौती है जिसे सरल किया जाना ज़रूरी है। इसके साथ ही आयकर भी उतना ही महत्वपूर्ण है, नहीं तो राजस्व नहीं बढ़ेगा। कच्चे तेल की कीमत बढ़ रही है। महंगाई का दबाव भी बढ़ गया है। जिन नये क्षेत्रों में आगे बढऩे की सोच रहे थे वो नहीं हो सका।

औद्योगिक उत्पादन बीते दो तिमाही में बहुत कमज़ोर हो गया है। कृषि क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाने की दिशा में काम किया जाना चाहिए। पिछले पांच साल में कृषि क्षेत्र में उत्पादन बहुत धीमी गति से बढ़ा है। नॉन बैंकिंग फाइनेंसियल कंपनियों की हालत बहुत खराब है। आईएलएंडएफएस यानी इंफास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फानेंशियल सर्विसेज, जो एक बहुत बड़ी संस्था है एक तरह से खत्म हो गयी है। बैंकों का एनपीए यानी जो कर्ज उन्होंने दिया है वो वापस नहीं आये, ये भी काफी बढ़े हैं। बैंक का स्वास्थ्य अच्छा नहीं होगा तो वे कैसे उद्योगपतियों और छोटे और मंझोले उद्योगों को कर्ज देंगे? मुद्रा योजनाओं की घोषणाएं की गयी थीं, लेकिन आगे बढऩे के लिए बहुत कुछ करना होगा। सरकार ने बहुत सी बातें की थीं। जब नोटबंदी की गयी थी तो उस समय क हा गया था कि कालाधन क म हो जायेगा।

नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, विजय माल्या, नितिन संदेसरा, जतिन मेहता जैसे लोग तो विदेश में हैं। क्या इन्हें वापस ला सकेंगे? यदि नहीं तो लोगों को कैसे ये संदेश देंगे कि जो बैंकों का पैसा लेकर भाग गये हैं और जिनके खिलाफ अलग-अलग केस चल रहे हैं उनपर कड़ी कार्रवाई करेंगे। जब तक ये नहीं दिखा पायेंगे तो आपकी बात पर लोग विश्वास क्यों करेंगे? मंदी के दौर से निकलना आसान नहीं है। विदेश से निजी क्षेत्र से कैसे निवेश आयेगा? सरकार रोजगार कैसे बढ़ायेगी? जिस रद्ग़तार से सक ल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में बढ़ोतरी हो रही है, उससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सक ता और उसे बढ़ाना ज़रू री है। जीडीपी कि स रद्ग़तार से बढ़ रही है यह भी मालूम नहीं है। क्योंकि सरकारी आंकड़े की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिह्न लग गया है। वैसे ताजा आंक ड़े 5.8 दर्शा रहे हैं लेकिन क्या ये भी सच है?

पिछले डेढ़ साल में पहली बार हुआ है जब भारत की जीडीपी चीन की जीडीपी से पीछे हो गई है। चीन की जीडीपी 6.4 प्रतिशत है। जनवरी से मार्च की जीडीपी के बारे में फोरकास्ट था कि 6.3 प्रतिशत तक रहेगी लेकिन जीडीपी उससे भी कम हो गई है। रिर्जव बैंक ने भी अनुमान जाहिर किया था कि 2019-20 की जीडीपी 7.2 प्रतिशत तक जा सकती है। इस जीडीपी में खेती का योदगान और कम हुआ है। जीडीपी दर में आई कमी अच्छी तो नहीं है। क्या यह अर्थव्यवस्था में किसी ठहराव का संकेत है? ऑटोमोबिल सेक्टर पहले से ही गिरावट झेल रहा है। कार कंपनियों ने अपना उत्पादन कम कर दिया है। मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की हालत खराब है। सरकार पर दबाव होगा कि वह ऐसी नीतियां बनाए कि लोग ज़्यादा पैसे ख़र्च करें क्योंकि उपभोक्ता वस्तुओं की खपत में भी ठहराव केआंकड़े आ रहे हैं। 5 जुलाई को बजट है। देखना है सरकार क्या करती है?

परंजोय गुहा ठकुरता
(लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं , ये उनके निजी विचार हैं )

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