निर्दोष जानवरों की जान बचाने के लिए छोड़ा पिता का घर

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शबरी के बारे में हम सभी जानते हैं, उन्हें राम भक्त के रूप में जाना जाता है। आज भी शबरी की जन्म तिथि शबरी जयंती के रूप में मनाई जाती है और शबरी माला मंदिर में इस दिन उत्सव भी होता है। लेकिन क्या आपको पता है कौन थी शबरी देवी और कैसे बनी भगवान श्रीराम की भक्त। दरअसर, शबरी एक आदिवासी भील की पुत्री थी। जाति प्रथा के आधार पर वह एक निम्न जाति मैं पैदा हुई थी। देखने में तो बहुत साधारण सी थी पर दिल की बहुत कोमल थी। उनके पिता ने उनका विवाह निश्चित किया लेकिन आदिवासियों की एक प्रथा थी किसी भी अच्छे कार्य से पहले जानवरों की बलि दी जाती थी और इसी प्रथा को पूरा करने के लिए उनके पिता ने विवाह के एक पूर्व सो भेड़ बकरियां लेकर आयें।

तब शबरी ने पिता से पूछा कि पिताजी इतनी सारी भेड़ बकरियां क्यों लायें आप? तब पिता ने कहा- शबरी यह एक प्रथा है जिसके अनुसार कल सुबह ही तुम्हारे विवाह की विधि शुरु करने से पूर्व इन सभी भेड़ बकरियों की बलि दी जाएगी। प्रथा के बारे में जानकर शबरी को बहुत दुख हुआ और निर्दोष जानवरों को बचाने के लिए पिता का घर छोड़ने का मन बना लिया। अगले दिन सुबह होने पर अपने घर से भागकर जंगल चली गई शबरी जंगल में अकेली भटक रही थी, तब वहाँ ऋषि मतंग के आश्रम में शबरी ने शरण ली। ऋषि मतंग ने उन्हें अपनी शिष्या स्वीकार कर लिया। लेकिन दूसरे ऋषियों ने इसका भारी विरोध किया। दूसरे ऋषि इस बात के लिए तैयार नहीं थे कि किसी निम्न जाति की स्त्री को कोई ऋषि अपनी शिष्या बनाये। ऋषि मतंग ने इस विरोध की परवाह नहीं की और ऋषि समाज ने ऋषि मतंग का बहिष्कार कर दिया और ऋषि मतंग ने उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया।

जब ऋषि मतंग परम धाम को जाने लगे तब उन्होंने शबरी को उपदेश दिया कि वह परमात्मा मैं अपना ध्यान और विश्वास बनाये रखें। परमात्मा सबसे प्रेम करते हैं। उनके लिए कोई इंसान उच्च या निम्न जाति का नहीं है। उनके लिए सब समान हैं। फिर उन्होंने शबरी को बताया कि एक दिन प्रभु राम उनके द्वार पर आयेंगे। ऋषि मतंग के स्वर्गवास के बाद शबरी ईश्वर भजन मैं लगी रही और प्रभु राम के आने की प्रतीक्षा करती रहीं। लोग उन्हें भला बुरा कहते, उनकी हँसी उड़ाते पर वह परवाह नहीं करती। उनकी आंखें बस प्रभु राम का ही रास्ता देखती रहतीं और एक दिन प्रभु राम उनके दरवाजे पर आए। शबरी धन्य हो गयीं, उनका ध्यान और विश्वास उनके इष्टदेव को उनके द्वार तक खींच लाया। भगवान् भक्त के वश मैं हैं यह उन्होंने साबित कर दिखाया। उन्होंने प्रभु राम को अपने झूठे फल खिलाये और दयामय प्रभु ने उन्हें स्वाद लेकर खाया। फ़िर वह प्रभु के आदेशानुसार प्रभुधाम को चली गयीं।

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