13 अक्टूबर रविवार को महर्षि वाल्मीकि की जयंती है। पुराणों के अनुसार इन्होंने कठोर तपस्या कर महर्षि का पद प्राप्त किया था। परमपिता ब्रह्मा के कहने पर इन्होंने भगवान श्रीराम के जीवन पर आधारित रामायण नामक महाकाव्य लिखा। ग्रंथों में इन्हें आदिकवि कहा गया है। इनके द्वारा रचित आदिकाव्य श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण संसार का सर्वप्रथम काव्य माना गया है।
रत्नाकर से बने महर्षि वाल्मीकि
धर्म ग्रंथों के अनुसार, महर्षि वाल्मीकि का पूर्व नाम रत्नाकर था। ये अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए लूट-पाट करते थे। एक बार उन्हें निर्जन वन में नारद मुनि मिले। जब रत्नाकर ने उन्हें लूटना चाहा, तो उन्होंने रत्नाकर से पूछा कि – यह काम तुम किसलिए करते हो? तब रत्नाकर ने जवाब दिया कि – अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए। नारद ने प्रश्न किया कि इस काम के फलस्वरूप जो पाप तुम्हें होगा, क्या उसका दंड भुगतने में तुम्हारे परिवार वाले तुम्हारा साथ देंगे? नारद मुनि के प्रश्न का जवाब जानने के लिए रत्नाकर अपने घर गए। परिवार वालों से पूछा कि – मेरे द्वारा किए गए काम के फलस्वरूप मिलने वाले पाप के दंड में क्या तुम मेरा साथ दोगे? रत्नाकर की बात सुनकर सभी ने मना कर दिया। रत्नाकर ने वापस आकर यह बात नारद मुनि को बताई। तब नारद मुनि ने कहा कि – जिन लोगों के लिए तुम बुरे काम करते हो यदि वे ही तुम्हारे पाप में भागीदार नहीं बनना चाहते तो फिर क्यों तुम यह पापकर्म करते हो? नारद मुनि की बात सुनकर इनके मन में वैराग्य का भाव आ गया। अपने उद्धार के उपाय पूछने पर नारद मुनि ने इन्हें राम नाम का जाप करने के लिए कहा। रत्नाकर वन में एकांत स्थान पर बैठकर राम-राम जपने लगे। कई सालों तक कठोर तप के बाद उनके पूरे शरीर पर चींटियों ने बाँबी बना ली, इसी वजह से इनका नाम वाल्मीकि पड़ा। कालांतर में महर्षि वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य की रचना की।
ब्रह्माजी के कहने पर की रामायण की रचना
क्रोंच पक्षी की हत्या करने वाले एक शिकारी को इन्होंने शाप दिया था तब अचानक इनके मुख से श्लोक की रचना हो गई थी। फिर इनके आश्रम में ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर कहा कि मेरी प्रेरणा से ही ऐसी वाणी आपके मुख से निकली है। इसलिए आप श्लोक रूप में ही श्रीराम के संपूर्ण चरित्र का वर्णन करें। इस प्रकार ब्रह्माजी के कहने पर महर्षि वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य की रचना की।