नागरिकता संशोधन बिल

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पूर्वोत्तर में भारी हिंसा के बीच नागरिकता संशोधन बिल राज्यसभा से भी पारित हो गया। पक्ष में 117 और विपक्ष 92 वोट पड़े। एक बार फिर मोदी सरकार बहुमत जुटाने में कामयाब रही। महाराष्ट्र में एनसीपी-कांग्रेस के साथ शिव सेना के सरकार बना लेने के बाद बदले राजनीतिक परिदृश्य में लग रहा था कि उच्च सदन से बिल पारित करा पाना आसाना ना होगा लेकिन थोड़ी बहुत आपात्तियों के बावजूद बीजद जैसे दल भी पक्ष में नजर आये। जरूर राजनीतिक विसंगतियां भी उजागर हुईं। लोकसभा में एनडीए के साथ दिखी शिवसेना, राज्यसभा में विरोध में दिखी। उसने बहिर्गमन का रास्ता चुना। अब इस बिल के पारित होने से बरसों से नागरिकता की बाट जोह रहे लोगों के लिए समान पूर्वक जीवन जीने और अफगानिस्तान में धार्मिक आधार पर सताये गये हिन्दू, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के अल्पसंख्यकों को अब भारत में शरणार्थी के तौर पर जीवन भर के लिए अभिषप्त नहीं रहना पड़ेगा। विपक्ष चाह रहा था कि उल्लिखित मुल्कों में मुस्लिम भी सप्रदाय विशेष के कारण सताये जाते हैं, उन्हें भी बिल में जोड़ा जाना चाहिए था।

मसलन, अहमदिया, बोहरा, कादियानी और शिया समुदाय के लोगों को भी कभी जिल्लत का सामना करना पड़ता है। मोदी सरकार पर विपक्ष का यह भी आरोप है कि उसने वोट बैंका की राजनीति को ध्यान में रखते हुए और मौजूदा आर्थिक समस्याओं व बेरोजगारी जैसे महत्वपूर्ण सवालों से ध्यान बंटाने के लिए सारा उपक्रम रचा है। नीयत सही होती तो भूटान, म्यांमार, नेपाल और मालदीव में भी अल्पसंख्यकों के साथ धार्मिक आधार पर प्रताडऩा और भेदभाव होता है, उसका बिल में भी उल्लेख किया गया होता। विपक्ष का बड़ा आरोप यह भी था कि मौजूदा सरकार आर्टिकल 14 का जो समानता की बात करता है, पालन नहीं किया गया है। यह एक प्रकार से हिंदू राष्ट्र की तरफ बढऩे के दिशा में एक कदम है। हालांकि आरोपों पर सफाई देते हुए गृहमंत्री ने बताया कि यह धार्मिक आधार पर समझे गये पड़ोसी मुल्कों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के उद्देश्य से बिल लाया गया है। विपक्ष जिसे बिल में शामिल ना करने का सुनियोजित प्रयास बता रहा है, वो सप्रदाय बहुसंख्यक है।

बावजूद इसके जो सप्रदाय विशेष अन्य धड़े मसलन अहमदिया, कादियानी, बोहरा और शिया से जुड़े लोग नागरिकता के लिए आवेदन करते हैं वो सुविधा इस बिल के बावजूद बरकरार है। इस सरकार ने अब तक 563 पाकिस्तानियों को भारत की नागरिकता प्रदान की है। इसलिए वोट बैंक की राजनीति का आरोप गलता है। वैसे भी इस बिल से भारतीय अल्पसंख्यकों का कोई संबंध नहीं है। यह बिल नागरिकी हिंसा को लेकर है। असम में गोहाटी, डिबू्रगढ़ ओर तिनसुकिया समेत कई स्थानों पर कई दिनों से आम लोग जिस तरह सड़क पर उतर कर विरोध जता रहे हैं, उन्हें तत्काल विश्वास में लेने की जरूरत है। यह क्षेत्र अपनी भाषा, साहित्य और संस्कृति के संरक्षण के लिए पहले भी बहुत शहादत दे चुका है। 1985 में असम समझौता में तत्कालीन राजीव सरकार ने भरोसा दिलाया था। अब इस बिल से पूर्वोार के लोगों को लगता है कि घुसपैठ करके आये लोगों को वैधता मिल जाएगी। हालांकि कई बार गृहमंत्री ने स्पष्ट किया है कि ऐसा नहीं होने जा रहा है, फिर भी विश्वास में लेने के दूसरे आय भी होने चाहिए।

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