देशभक्ति पर सियासत

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यह वारई चिंताजनक है कि जब देश के भीतर आम चुनाव के वक्त जनता को सीधे प्रभाव करने वाले मुद्दों पर बात होनी चाहिए तब दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां भाजपा और कांग्रेस देशभक्ति पर वाद-विवाद कर रही हैं। भाजपा के स्वभिमान दिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट किया कि देशभक्ति व मूल्य पार्टी की शान है। इसी दिन 6 अप्रैल को कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तालकटोरा में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि लोगों को देशभक्ति की नई परिभाषा सिखाई जा रही है जबकि विविधता अस्वीकार करने वाले को देशभक्त कहा जा रहा है। चुनाव पहला चरण करीब आते ही इन पार्टियों के नेताओं ने जब मुद्दों से किनारा करते हुए दलों के बीच राष्ट्रवाद और देशप्रेम को लेकर एक प्रतिस्पर्धा शुरु हो गई है और पब्लिक अवाक है। यह सब देख-सुनकर आखिर करें क्या? विचारों में भिन्नता बहुत स्वाभाविक है लेकिन यही जब एक साथ होती हो तो खूबसूरत गुलदस्ता बन जाती है।

चिंता की बात यह है कि इस खूबसूरती पर हमारे नेता अपने सियासी फायदे के लिन मनचाहा अर्थ चस्पा कर रहे हैं। साम्प्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर एक अरसे से सत्ता की सियासत होती आयी है। खास तौर पर 1996 में जब पहली बार सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते अटल बिहारी वायपेयी की अगुवाई में केन्द्र में सरकार बनी थी और वह सरकार सिर्फ 13 दिन ही चली। सम्प्रदायिक पार्टी के तौर पर चिन्हित भाजपा को गैर कांग्रेसी अगुवाई दलों ने समर्थन देने से गुरेज कर दिया था। यह बात और है कि बाद में एनडीए के तौर पर सरकार बनी। भाजपा के बड़े उभार के बाद से धर्मनिरपेक्षता बनाम साम्पद्रयिकता का सवाल सियासी विमर्श का बड़ा हिस्सा बनता चल गया। पर 2014 में जिस तरह भाजपा को मोदी की अनुवाई में पूर्ण बहुमत मिला फिर एनडीए के तौर पर केन्द्र में ताजपोशी हुई उससे कांग्रेस के साथ ही दूसरे गैर कांग्रेसी दलों के लिए एक नई चुनौती पेश हो गयी और इसी बदले परिदृश्य के चलते राष्टवाद और देशभक्ति के रूप में एक नया विमर्श सामने है।

भाजपा और कांग्रेस के बीच इसी को लेकर प्रतिस्पर्धा चल रही है। बाकी दूसरे दल कोरस संगीत की तरह भूमिका निभा रहे हैं। दुर्भाग्यपूर्ण अब यह है कि इस सियासी लड़ाई में सेना के शौर्य को भी शामिल कर लिया गया है, जो कि नहीं होना चाहिए था। भाजपा जहां आतंकियों को सबक सिखाती सेना की गुणगान करते हुए अपनी पीठ थपथपा रही है और यह भी कहने से नहीं चूक रही कि मोदी सरकार में सेना को खुली छूट मिली हुई है। उसी के सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर पुलवामा के बाद बालाकोट पर एयर स्ट्राइक को भी मोदी के साहसिक राजनीति फैसले के तौर पर रेखाकित किया जा रहा है जिससे जाहिर तौर पर सेना को श्रेय जाने के साथ ही उसका लाभ मोदी सरकार के हिस्से में भी जाता है। पर निशाना साधने के अतिरेक में या इसे हड़बड़ी कहें कि सेना भी जाने-अनजाने किसी ना किसी रुप में निशाना बन रही है। विरोधी दल भी मोदी सरकार पर निशाना साध रहे हैं। इसी आरोप-प्रत्यारोप की सियासी कोख में राष्ट्रवाद और देशभक्ति नये अर्थ में सामने है। किसी की देशभक्ति पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। किसी के देशप्रेम किसी से कम नहीं है। राष्ट्र को लेकर सोचने के तरीके में फर्क हो सकता है लेकिन राष्ट्र के लिए सभी के सरोकार एक जैसे है।

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