दूसरी पारी में आगे बढ़ने की बारी

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जनता का निर्णायक जनादेश किसी को भी आश्वस्त करने के लिए काफी होना चाहिए। इससे राजनीतिक अस्थिरता के बादल छंटते हैं और सरकार के लिए बिनाॉ रुकावट आगे बढऩे का रास्ता खुलता है। हम खुशनसीब हैं जो इतिहास के इस क्षण के साक्षी बने, जब एक राजनीतिक दल को पहले से बेहतर, एक तरफा, मजबूत और बेबाक जीत हासिल हुई। यह एक अनूठी और अद्वितीय उपलब्धि है। इकॉनमी के लिए यह बहुत अच्छी खबर है। इसका अर्थ यह है कि नीतियों में निरंतरता बनी रहेगी और सख्ती के साथ सुधारों को आगे बढ़ाने का अवसर मिलेगा। हम भारतीयों के लिए यह उत्सव का समय है और गर्व का भी। भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ रही बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है। पिछले दो दशकों में हमारी इकॉनमी लगभग 7 प्रतिशत की सालाना रफ्तार से बढ़ी है। इस सरकार ने क ई बड़े सुधार लागू किए। कोऑपरेटिव फिस्कल फेडरलिज्म की सोच बनाई, जिसने गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) को जन्म दिया।

भारतीय बैंक्रप्सी कोड (आईबीसी) लागू किया और मुद्रास्फीति की दरों को 2014 के 5.8 फीसद से खींचकर 3.8 से खींचकर 3.8 फीसद से खींचकर 3.8 फीसद पर ले आई। फिर भी, इस तथ्य को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता कि जी-20 देशों में भारत की गिनती सबसे गरीब देशों में होती है, जहां रोजगार का मसला सुलझाया नहीं जा सका है। कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का खतरा सिर पर मंडरा रहा है। भारत को हर साल अपनी जरूरत का 85 प्रतिशत क च्चा तेल आयात क रना पड़ता है। इसकी कीमतें बढ़ीं तो राजकोषीय घाटा बढ़ेगा। ऐसा हुआ तो विकास योजनाओं पर असर पड़ेगा और महंगाई रोक ने की सरकार की सलीके दार कोशिशें भी प्रभावित होंगी। दो और मुद्दे चिंता का कारण बने हुए हैं- इन्फ्रास्ट्रक्चर और असेट क्वालिटी। कमजोर बुनियादी ढांचा हमारी महत्वाकांक्षी योजना ‘मेक इन इंडिया’ के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है। यह योजना हमारी निर्माण क्षमता को बढ़ाने, रोजगार पैदा करने और विकास को गति देने का माद्दा रखती है।

इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ेगा तो स्टील, सीमेंट, ऑटो, कृषि और रीयल इस्टेट जैसे क्षेत्रों में गति आएगी। पिछले कुछ सालों में हने बिजली से जुड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर में काफी सुधार किया है लेकिन सड़क, बंदरगाह, रेल और उड़ान जैसे क्षेत्रों में पहले से ज्यादा इनवेस्टमेंट की जरूरत है। उपलब्ध जानकारी बताती है कि हमारी कुल जीडीपी का 4 से 5 फीसद हिस्सा कमजोर ढांचे की वजह से बेकार हो जाता है। यह साबित हो चुका है है मजबूत ढांचे का असर बहुआयामी होता है। सरकार को इस अति अनिवार्य क्षेत्र में दृढ़ता के साथ क दम बढ़ाने चाहिए। हमारे पब्लिक सेक्टर बैंकों में असेट क्वॉलिटी की समस्या ने इतना विकराल रूप ले लिया है कि सुव्यवस्थित कारगर प्रक्रिया के बिना कि सी तरह की टिकाऊ इकनॉमिक रिकवरी संभव नहीं है। इस सरकार ने इस दिशा में लगातार उचित क दम उठाए हैं।

जैसे, रिजर्व बैंक ने 2015 में असेट ह्ववालिटी रिव्यू शुरू कि या, पिछले साल प्रॉजेक्ट शक्ति लॉन्च किया गया, सरकार ने यह भी स्वीकारा कि एनपीए एक कठिन समस्या है और स्वस्थ क्रेडिट प्रॉविजनिंग के लिए जगह बनानी होगी। दिवालिया कानून (आईबीसी) इस मामले में सहायक सिद्ध हुआ है। एनपीए से निपटने का सही उपाय यही है कि असेट्स बेचे जाएं, ताकि कर्जदाताओं के कर्ज की बड़ी रकम वसूल की जा सके । बैंकों को कमजोर असेट क्वालिटी की समस्या हल करने के साथ ही अपनी कार्यक्षमता बढ़ानी होगी। इससे नॉन बैंक फाइनैंस सेक्टर पर तनाव कम किया जा सकेगा। सरकार को जो काम करने हैं, वे सामने दिखाई दे रहे हैं। सुधार अजेंडा पर तुरंत कठोर उपाय करने होंगे और लंबित फैसले पहले साल में ही कर लेने होंगे। ढांचागत खर्च, प्राइवेटाइजेशन, असेट मॉनिटाइजेशन और क्रेडिट ऑफ टेक सुविधा के लिए आर्थिक प्रावधान को तत्काल प्राथमि ता देनी होगी।

खराब मॉनसून की आशंका मंडरा रही है और कृषि क्षेत्र का संकट व्यापक बीमारी का रूप ले चुका है। जो विश्वकप में हैट्रिक लेने वाले दूसरे भारतीय गेंदबाज बन गए हैं। अपने दमदार प्रदर्शन से शमी ने साबित इससे निपटने के लिए बाजारों को बेहतर बनाना होगा, उत्पादन बढ़ाना होगा, खर्चों में कटौती करनी होगी और न्यूनतम खरीद कीमत किसानों तक पहुंचना सुनिश्चित करना होगा। अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर पर हमें तीखी नजर रखनी होगी कि कै से भारतीय निर्यातकों को इसका फायदा मिले और कै से हम प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ सकें। विश्व स्तर पर मैन्युफैक्चरिंग की सप्लाई चेन में बदलाव के लिए हमें तैयार रहना चाहिए। इस जगह को हम भर सकें, इसके लिए हमें निवेश आकर्षित करना होगा, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और लेबर कॉस्ट आर्बिट्रेज में सुधार लाना होगा। मैन्युफैक्चरिंग समुदाय के सदस्य के नाते मैं कहूंगा कि इस क्षेत्र को समर्थन देने वाली, इसको फायदा पहुंचाने वाली नीतियां बनाई जाएं। यह क्षेत्र बढ़ा तो बड़े पैमाने पर रोजगार बढ़ेगा।

हर्ष गोयनका
(लेखक आरपीजी एंटरप्राइजेज के चेयरमैन हैं)

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