तो इतिहास कुछ और होता

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1996 में जब मैं राज्य के कैबिनेट में मंत्री था और मेरे पास 9 पोर्टफोलियो थे, तब मैंने विधानसभा सत्र में एक बहुत ही दिलचस्प और विचारोत्तेजक स्पीच दी थी। महाजन उस दिन मुंबई में थे। कई रिपोर्टर उनसे मिलने गए थे और महाजन ने उनसे पूछा कि विधानसभा में या चल रहा है। पत्रकारों ने उन्हें बताया कि कल सुबह की उनकी हेडलाइन मेरे और हाउस में मेरी स्पीच के बारे में ही होगी। महाजन बहुत उदार स्वभाव के थे और उन्होंने उसी उदारता में पत्रकारों से कहा- आप लोग राणे साहब को कितना जानते हैं? मैं उन्हें बचपन से जानता हूं। वह महाराष्ट्र की राजनीति में एक खुशनुमा सरप्राइज पैकेज हैं। मेरे लिए उनके ये शब्द बहुत अहम थे क्योंकि मुझे लगा कि महाजन जैसे सीनियर नेता जिनसे मैं प्रभावित हूं, उन्होंने न सिर्फ मेरी प्रफेशनल ग्रोथ को नोटिस करना शुरू किया है बल्कि वह मेरी तारीफ भी कर रहे हैं। मुंडे हालांकि मुझसे बड़े थे, लेकिन हमेशा मुझसे दोस्त की तरह बात करते थे और बातचीत में हमेशा गर्माहट और सम्मान होता था। यहां तक कि उन्होंने सुनिश्चित किया कि मुझे बीजेपी से पूरा सपोर्ट मिले, इतना सपोर्ट कि मुझे लगा, कैबिनेट में जो बीजेपी के मंत्री हैं वे मेरी पार्टी के लोगों से कोई अलग नहीं हैं।

मुझे लगा कि हम सब एक ही पार्टी से हैं न कि दो अलग-अलग पार्टियों से। लेकिन दुखद कि यह सौहार्द कम वक्त ही रहा। गोपीनाथ मुंडे चीफ मिनिस्टर बनना चाहते थे। उन्होंने कई बार अपनी यह इच्छा मुझसे और दूसरों से भी साझा की। उन्हें लगता था कि जितनी जल्दी विधानसभा के चुनाव होंगे, उतनी जल्दी वह मुख्यमंत्री बन जाएंगे। वह इस बात को लेकर पूरे आश्वस्त थे कि चुनाव में बीजेपी को सेना से ज्यादा सीटें मिलेंगी। इसलिए जब टॉप लीडरशिप में यह चर्चा हुई कि विधानसभा चुनाव को छह महीने पहले करवा लिया जाए और लोकसभा चुनाव के साथ ही सितंबर 1999 में विधानसभा चुनाव कराए जा सकते हैं, तो उन्होंने महाजन और दूसरे बीजेपी नेताओं से कहा कि उन्हें पूरा यकीन है बीजेपी की ही जीत होगी। महाजन, जो उनके ब्रदर इन लॉ भी थे, उन्होंने मुंडे को पूरा सपोर्ट किया। ..मुझे लगता है कि इसके लिए उन्होंने साहेब (बाला साहेब ठाकरे) को मनाया। उनसे यह कहा कि प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए गठबंधन करना सही फैसला होगा। एक दिन साहेब ने मुझे मातोश्री बुलाया और कहा- राणे, मैं सोच रहा हूं कि विधानसभा चुनाव छह महीने पहले करा लिया जाए, जैसा महाजन ने प्रपोजल दिया है। आप इस बारे में या सोचते हो? मुझे लगा कि यह एक खराब आइडिया है। मुझे यकीन था कि हमें जनता के बीच खुद को साबित करने के लिए और उन्हें विकास दिखाने के लिए थोड़ा और वक्त चाहिए।

हालांकि ये मैंने साहेब से नहीं कहा। उन्हें अपना फैसला खुद लेने का अधिकार था। इसलिए अपना विचार बताने की बजाए मैंने उनसे कहा- मैं आपसे मिले किसी भी निर्देश का पालन करने के लिए तैयार हूं। अगर आपको लगता है कि चुनाव पहले कराना हमारी पार्टी और हमारी सरकार के लिए अच्छा होगा तो ऐसा ही करें। साहेब को लगा कि मैं उनके विचार को अप्रूव कर रहा हूं और मुझे इस फैसले से कोई दिक्कत नहीं है, उन्होंने तुरंत मार्च 2020 की बजाय चुनाव सितंबर 1999 में कराने की इजाजत दे दी। अगर साहेब ने यह कदम नहीं उठाया होता तो मेरे पास महाराष्ट्र के लोगों को यह दिखाने के लिए छह और अहम महीने होते कि मैं उनका सही नेता हूं। मुझे पूरा यकीन है कि अगर चुनाव पहले नहीं होते तो आज इतिहास कुछ अलग होता और हम महाराष्ट्र में कम से कम एक और कार्यकाल के लिए सत्ता में होते। मुझे अभी भी चुनाव से पहले के वे कुछ महीने याद हैं, जब हमने आधिकारिक तौर पर चुनाव अभियान की शुरुआत की। हमने और मुंडे ने साथ साथ मीडिया से बात की और ऐलान किया कि हम मिलकर चुनाव लड़ेंगे। उसके बाद हम दोनों अपनी कार में अपने अपने विधानसभा क्षेत्र के लिए निकल गए, सिंधुदुर्ग और बीड़। आगे एक जगह हमारी कार रेड लाइट पर एक दूसरे के बगल में आकर रुकी। मैंने अपनी कार का शीशा नीचे किया और मुंडे से कहा- बेस्ट ऑफ लक। मैं कामना करता हूं कि आपके ज्यादा से ज्यादा विधायक जीतें और आप मुख्यमंत्री बनो। मैं दिल से उनकी सफलता की कामना कर रहा था, जब तक यह एक फेयर प्ले था।

नारायण राणे
(राणे की पुस्तक-‘नो होल्ड्स बार्ड’ से साभार)

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