तालिबानी हुकूमत: भयभीत अफगानी

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लरविवार को जिस प्रकार अफगानिस्तान की राजधानी पर तालिबान का कजा हुआ और उससे पहले अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी व उपराष्ट्रपति अमीरुल्ला सालेह देश छोड़कर चले गए हैं। इस घटना से लगता है कि अफगानी आवाम विशेषकर महिलाओं ने जो बीस साल के अरसे में आजादी का जो स्वाद चखा था और खुली फिजा में सांस लेनी शुरू की थी उस पर तालिबान द्वारा प्रतिबंध के फरमान का खतरा मंडराने लगा है। भले ही तालिबानी नेताओं ने वहां की जनता को यह विश्वास दिलाने का प्रयास किया है कि वह अफगानिस्तान में शांति के साथ साा संभालेंगे। जहां एक ओर तालिबानी जनता व पड़ोसी देशों को अपने विश्वास में लेने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं उनका एक ऐलान इस आशंका को जन्म दे रहा है कि वह अपनी 20 वर्ष पुरानी परंपराओं को बरकरार रखेंगे। जिससे अफगानियों की स्वतंत्रता पर फिर प्रतिबंध लग सकता है। तालिबालियों के साारुढ़ होने के बाद यह प्रतीत होने लगा है कि इन 20 वर्षों में अफगानिस्तान ने विदेशों जो व्यापारिक संबंध बनाए थे वह भी प्रभावित होंगे।

विदेश नीति के विशेषज्ञ इस स्थिति की समीक्षा कर रहे हैं कि अफगानिस्तान की परिस्थितियां तालिबान के अनुकूल रही तो वहां जनता के साथ तालिबानियों का व्यवहार कैसा होगा। वह अपने वर्चस्व को बढ़ाने के लिए आतंकवाद का सहारा लेगा क्या अपने व्यवहार शांतिपूर्ण व मधुरता लाएगा। ऐसी स्थिति में तालिबान का अफगानी जनता के प्रति व्यवहार देखने लायक होगा। हालांकि जिस तरह तालिबान ने कजा किया है, उससे तो नहीं लगता कि तालिबान अपना पुराना व्यवहार छोड़ देगा। अब प्रश्न उठता है कि साारुढ़ होते ही तालिबान का अफगानिस्तान में क्या अपने पड़ोसी देशों के साथ कैसा बर्ताव होगा क्या आगे भी आतंकी संगठन सक्रिय होंगे या आतंकवाद को तालिबान के साासीन होते ही विराम लग जाएगा। भारत भी अफगानिस्तान का पड़ोसी देश है वह अफगानिस्तान की राजनीतिक स्थिति पर अपनी नजरें गड़ाए हुए है। यदि भारत के प्रति तालिबान का रवैया सकारात्मक रहा तो सब ठीक रहेगा यदि तालिबान ने अपने रवैये में कोई परिवर्तन नहीं किया तो उसके लिए भारत को अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा।

इस सत्ता परिवर्तन जहां अफगानी जनता में खौफ का वातावरण पनप रहा है, वहीं उसकी आर्थिक स्थिति पर भी प्रभाव पड़ेगा। हो सकता है कि तालिबान के आतंकवादी वाले रवैये को देखते हुए शांतिप्रिय देश अफगानिस्तान से अपने आर्थिक संबंध खत्म कर सकते हैं। वर्तमान में जो स्थिति अफगानिस्तान में पनपी है, उससे हर तरफ हर तरफ डर, अफरा-तफरी छा गई। अफगानिस्तानी जनता इस दहशत भरे माहौल से दूर होना चाहती है लेकिन अब हर ओर तालिबान का प्रभुत्व है। आने वाले समय में देखने वाली बात ये होगी कि साारुढ़ तालिबानी नेता कड़क रवैया नहीं छोड़ते या आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर कार्रवाई नहीं करते तो संयुक्त राष्ट्र संघ अपना हस्तक्षेप कर सकता है। हालांकि यह अफगानिस्तान का अपना अंदूनी मामला है, लेकिन यदि आतंकवाद द्वारा मानवता को रौंदा गया तो संघ अपना हस्तक्षेप कर सकता। इसके अलावा भारत जो एक लंबे समय से आंतकवाद का शिकार रहा है, वह आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र संघ में शामिल देशों से अभियान चलाने की गुहार लगा रहा है, वह भी अपनी रणनीति में बदलाव ला सकता है।

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