ट्रंप चले जाएंगे पर ट्रंपवाद रहेगा !

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U.S. President Donald Trump speaks as he holds a joint news conference with Spanish Prime Minister Mariano Rajoy in the Rose Garden at the White House in Washington, U.S., September 26, 2017. REUTERS/Joshua Roberts

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की विदाई हो गई है। अमेरिकी जनता ने उनके ब्रांड की राजनीति को खारिज कर दिया है। सोचें, पूरी एक सदी में वे सिर्फ तीसरे राष्ट्रपति हैं, जिन्हें दूसरा कार्यकाल नहीं मिला है। सदी में सबसे ज्यादा मतदान के जरिए अमेरिका के लोगों ने उनको हराया है। लेकिन उनका हारना भी मामूली नहीं है। वे सात करोड़ से ज्यादा वोट लेकर हारे हैं। अमेरिका के इतिहास में किसी जीते हुए राष्ट्रपति को कभी सात करोड़ वोट नहीं मिले। इस बार रिकार्ड संख्या में वोटिंग हुई, जो बाइडेन रिकार्ड संख्या में वोट लेकर जीते हैं तो डोनाल्ड ट्रंप रिकार्ड संख्या में वोट लेकर हारे हैं। अमेरिका के सात करोड़ से ज्यादा लोगों ने उनमें भरोसा जताया। रिपब्लिकन पार्टी के असर वाले लगभग सारे राज्यों में ट्रंप जीते। इतना ही नहीं, जिन बैटलग्राउंड या स्विंग स्टेट्स में ट्रंप हारे हैं वहां भी बराबरी की लड़ाई हुई है। मिसाल के तौर पर पेन्सिलवेनिया को देख सकते हैं। करीब 70 लाख लोगों ने वहां वोट किए थे और बाइडेन महज 42 हजार वोट से जीते। आधे से एक फीसदी के फर्क से वे कई राज्यों में आगे रहे।

जाहिर है यह मुकाबला बराबरी का ही था। तभी यह कहना मुश्किल है कि इन नतीजों के बाद अमेरिका बदल जाएगा। हकीकत में अमेरिका को ट्रंप से मुक्ति मिली है पर ट्रंपवाद से नहीं मिली है। यह भी संभव है कि ट्रंपवाद अमेरिका में स्थायी हो जाए। इसी वजह से अभी से इस बात की भी चर्चा हो रही है कि ट्रंप अगला चुनाव लड़ सकते हैं। ट्रंप जब अगला चुनाव यानी 2024 का चुनाव लड़ेंगे तब उनकी उम्र उतनी होगी, जितनी अभी जो बाइडेन की है। सो, ट्रंपवाद को तब तक जीवित रखने का प्रयास भी किया जाएगा और यह प्रयास ट्रंप खुद भी करेंगे और उनकी पार्टी भी करेगी।

पिछले चार साल की ट्रंप की राजनीति और इस चुनाव में उनके प्रचार के बाद अमेरिका एक विभाजित समाज के रूप में सबसे सामने मौजूद है। इसे देख कर ही जो बाइडेन ने राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होने के बाद पहले भाषण में कहा कि वे अमेरिका को बांटने का नहीं, जोड़ने का काम करेंगे। ट्रंप ने बांटने का काम किया था और अमेरिका बंटा भी। इसलिए उसे जोड़ना आसान नहीं होगा। अमेरिका के गोरे नस्लवादी और ज्यादा आक्रामक हो सकते हैं। खास कर उप राष्ट्रपति पद पर कमला हैरिस की मौजूदगी की वजह से। यह बात स्पष्ट रूप से दिख नहीं रही है पर यह काफी हद तक सही है कि बराक ओबामा के आठ साल तक राष्ट्रपति रहने से ट्रंप के जीतने की जमीन बनी थी। कमला हैरिस की मौजूदगी और उनके राष्ट्रपति बनने की संभावना ट्रंप समर्थकों को जोड़े रहेगी।

ट्रंप ने इस बात को समझ कर ही प्रचार में कई बार कहा कि कमला हैरिस वामपंथी हैं और वे जल्दी ही बाइडेन को हटा कर राष्ट्रपति पद पर कब्जा कर लेंगी। अब ये सारी बातें अमेरिका के गोरे नस्लवादियों को डराने वाली है। उनको महिला से डर लगता है, भारत और कैरेबियाई मूल की महिला उन्हें और डरा रही है और साथ ही उनका वामपंथी होना और भी डराने वाला है। ध्यान रहे अमेरिका में वामपंथ को लेकर आम अमेरिकी चिंतित रहता है। रूस की यादें और चीन का खतरा उनकी इस चिंता को बढ़ा देता है। तभी डेमोक्रेटिक पार्टी ने भी उम्मीदवारों के चुनाव में यानी प्राइमरी में बर्नी सैंडर्स को हराया। वे वामपंथी झुकाव वाले क्रांतिकारी व्यक्ति थे, जबकि बाइडेन मध्यमार्गी हैं। सो, कमला हैरिस का डर ट्रंप दिखाते रहेंगे। वे अमेरिकी समाज को थोड़ा और बांटने के लिए इसका इस्तेमाल करेंगे।

यूरोप के देशों में जिस तरह से आतंकवादी हमले हुए हैं और जैसे यूरोपीय देशों के नेताओं ने नाम लेकर इस्लामिक आतंकवाद की निंदा की है और लड़ने का संकल्प जताया है। वह भी ट्रंपवाद को बढ़ावा देने वाला साबित होगा। इसके लिए किसी को कुछ करने की जरूरत नहीं है। अपनी जहालत में दुनिया भर के जिहादी संगठन खुद ही ट्रंपवाद को खाद-पानी देते रहेंगे। यह इस बार के चुनाव में भी दिखा है। फ्रांस और ऑस्ट्रिया में हुए हमले के बाद तीन नवंबर का मतदान हुआ, जिसमें ट्रंप को जम कर वोट मिले हैं। बाइडेन जीते हैं इन हमले से पहले हुई वोटिंग के दम पर। अगर अर्ली वोटिंग में या पोस्टल बैलेट के जरिए बड़ी संख्या में लोगों ने वोट नहीं डाले होते और सब तीन नवंबर का इंतजार कर रहे होते तो, वोट का अंतर जितना कम है, उससे लग रहा है कि नतीजे अलग भी हो सकते थे।

तभी बाइडेन को अपने पहले कार्यकाल में या कम से कम शुरुआती दिनों में ट्रंप की नीतियों में बहुत क्रांतिकारी बदलाव के बारे में नहीं सोचना चाहिए। अगर वे सचमुच अमेरिकी समाज को जोड़ना चाहते हैं तो उन्हें लोगों के मन से भय निकालना होगा। रैडिकल इस्लाम का भय निकालना होगा। चीन का भय दूर करना होगा। रूस के खतरे के बारे में लोगों को आश्वस्त करना होगा कि वह अमेरिका का कुछ नहीं कर सकता है। प्रवासियों के बारे में अमेरिकी लोगों को भरोसा दिलाना होगा। सबसे पहले कोरोना की महामारी से लड़ने के लिए प्रभावी नीति बनानी होगी और अर्थव्यवस्था व रोजगार की दर बनाए रखते हुए इससे निपटना होगा। ट्रंप ने अमेरिका को महान बनाने के अपने जुमले में जितनी चीजों को शामिल किया था, उन सबका ध्यान बाइडेन को रखना होगा। उन्हें कम से कम अभी कुछ दिन तक अमेरिका के व्यापार संरक्षण की ट्रंप की नीतियों को ही आगे बढ़ाना होगा, अन्यथा पहले दिन से उनके खिलाफ माहौल बनने लगेगा। वैसे भी अमेरिका का हर नेता अमेरिका फर्स्ट की नीति पर चलता है। बाइडेन भी उसी नीति पर चलेंगे फिर भी उन्हें ट्रंप की नीतियों को बदलने से पहले सौ बार सोचना होगा।

अजीत कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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