टीवी को पछाड़ता इंटरनेट

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एक ऐसे समय, जब गति ही सब कुछ है, मनोरंजन के माध्यम के रूप में टेलिविजन इंटरनेट से पिछड़ रहा है क्योंकि उसके पास कार्यक्रमों की न तो विविधता है और न ही गति। वह गति के मामले में इंटरनेट से मुकाबला नहीं कर पा रहा है और कंटेंट के स्तर पर हमारी जानकारी में कुछ नया जोड़ भी नहीं पा रहा है। भारत में सूचना, शिक्षा और मनोरंजन के उद्देश्य से शुरू हुए टेलिविजन को इंटरनेट से सूचना के क्षेत्र में कड़ी चुनौती मिली है, पर लंबे समय तक वह मनोरंजन के क्षेत्र में अपनी बादशाहत बनाए रखने में सफल रहा। अब जरूर मनोरंजन के क्षेत्र में उसका वर्चस्व खतरे में है। मोबाइल विडियो उपभोक्ता की चियों के हिसाब से कंटेंट उपलब्ध कराता है। टेलिविजन ने शिक्षा के क्षेत्र में तो पांव ही नहीं रखे। जो कुछ हुआ भी, वह सरकारी टेलिविजन चैनलों में हुआ हालांकि वे कार्यक्रम भी खासे नीरस और प्रभावहीन रहे, जबकि यूट्यूब किसी भी मुद्दे पर विडियो का विकल्प देता है। कंसल्टेंसी संस्था के पीएमजी और एरोस नाउ की एक संयुक्त रिपोर्ट के मुताबिक देश में अस्सी प्रतिशत दर्शक, जिन लोगों ने ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लैटफॉर्म की सेवाएं ले रखीं हैं। अपने मनोरंजन की जरूरतें ऑनलाइन कंटेंट से पूरी कर रहे हैं। इनमें फिल्म देखने से लेकर मैच देखना तक शामिल है। इनमें से अड़तीस प्रतिशत लोग टीवी देखना पूरी तरह छोडऩे के बारे में सोच रहे हैं।

यह सर्वे देश के सोलह राज्यों में किया गया। सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2023 तक भारत में 50 करोड़ ऑनलाइन विडियो उपभोक्ता होंगे और यह चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बाजार होगा। पिछले पांच सालों में मोबाइल ने तेजी से हमारे दिमाग और घरों में जगह बनाई है और दर्शकों का व्यवहार भी तेजी से बदला है। लोग अब टीवी के महज दर्शक न होकर उपभोक्ता बन गए हैं। वे किसी भी एक माध्यम पर ज्यादा देर नहीं टिकना चाहते। यह गति टेलिविजन के पारंपरिक माध्यम के पास नहीं है। कम से कम शहरों में पूरा परिवार एक साथ बैठकर अब टीवी नहीं देखता। स्मार्टफोन और कंप्यूटर ने हमारी इस आदत को बदल दिया है। आज की पीढ़ी की दुनिया मोबाइल और लैपटॉप में है। वह अपना ज्यादा वक्त इन्हीं के साथ बिताती है। यह मनोरंजन की ऐसी दुनिया है, जहां कोई कभी भी अपने समय के हिसाब से अपना मनपसंद कार्यक्रम (विडियो) देख सकता है। इंटरनेट के विडियो (धारावाहिक / फिल्में/वृत्तचित्र/गाने) कंटेंट के स्तर पर युवाओं की आशा और अपेक्षाओं की पूर्ति कर रहे हैं। वे दुनिया से उनका परिचय करा रहे हैं, उनका एक्सपोजर बढ़ा रहे हैं। जहां न जबर्दस्ती के विज्ञापनों का शोर है और न ही कार्यक्रमों के बीच में पीछे छूट जाने का डर। कोई भी कभी भी अपने हिसाब से पूरी सीरीज एक दिन में देख सकता है। इसके लिए हफ्ते या दिन का इंतजार करने की जरूरत नहीं । पिछले चार सालों में करीब तीस विडियो स्ट्रीमिंग प्लैटफॉर्म देश में लॉन्च हुए हैं, जिनमें अमेरिकन ब्रांड अमेजन प्राइम और नेटफ्लिक्स के अलावा आल्ट बालाजी, सोनी लाइव, हॉटस्टार, जी फाइव, वूट जैसे नाम शामिल हैं।

ई-मार्केटर के आकलन के मुताबिक साल 2020 में भारत डिजिटल विडियो देखे जाने वाले कुल समय में अमेरिका को पीछे छोड़ देगा। अभी एक वयस्क भारतीय औसतन एक घंटा बारह मिनट विडियो देखता है। ज्यादातर (76.5 प्रतिशत) विडियो यह अपने मोबाइल पर देखता है। डिजिटल विज्ञापनों पर बढ़ता खर्च भी इसी तथ्य को इंगित कर रहा है। साल 2015 में इन पर 6010 करोड़ रुपये खर्च किए गए। साल 2020 तक इसके करीब चार गुना यानी करीब 25,520 करोड़ रुपये हो जाने की उम्मीद है। नेटफ्लिक्स ने सेट टॉप बॉक्स से टीवी देखने वाले दर्शकों के लिए हैथवे, टाटा स्काई, वोडा फोन और एयरटेल से करार किया है ,जिसमें सेट टॉप बॉक्स के साथ एक ऐसा रिमोट आएगा जिसके प्रयोग से दर्शक सीधे नेटफ्लिक्स के कंटेंट को स्ट्रीम से देख पाएगा। देश में प्रति व्यक्ति डाटा उपभोग साल 2014 में .26 जीबी था, जो 2018 में बढक़र 7.69 जीबी हो गया। इस बढ़ोतरी का एक बड़ा कारण ऑनलाइन विडियो के चलन में इजाफा रहा है। इन तथ्यों के बावजूद यह मान लेना जल्दबाजी होगी कि देश में टीवी दर्शन जल्दी ही इतिहास हो जाने वाला है। ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल ने जुलाई 2018 में जो आंकड़े जारी किए, वे बताते हैं कि 2016 से अब तक भारत में टेलिविजन के दर्शकों की तादाद में बारह प्रतिशत की बढ़त हुई है।

देश के लगभग 66 प्रतिशत भारतीय घरों में टीवी सेट हैं। शहरी भारत में टीवी सेट खरीदे जाने की वृद्धि दर चार प्रतिशत है, वहीं उल्लेखनीय रूप से गांवों में यह दर दस प्रतिशत है। टीवी देखने में बिताए जाने वाले समय में शहरों में दस प्रतिशत की वृद्धि हुई है तो गांव में यह दर तेरह प्रतिशत है। ट्राई की रिपोर्ट के अनुसार चीन के बाद भारत में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा टेलीविजन का बाजार है। दरअसल टीवी एक व्यवस्थित माध्यम है, जबकि इंटरनेट विडियो को अभी व्यवस्थित होना है। लाभ के लिए अब भी विज्ञापन एक बड़ा स्रोत है, यद्यपि अमेजन प्राइम विडियो और नेटफ्लिक्स के सब्सक्रिप्शन प्लान की सफलता ने यह धारणा तोड़ी है कि लोग माध्यमों पर पैसा खर्च करना नहीं चाहते, पर अभी यह काफी शुरुआती अवस्था में है। इंटरनेट विडियो पर हिंसा और अश्लीलता बढ़ाने के आरोप लगातार लगते रहे हैं और इनको सेंसर के दायरे में लाने की मांग भी तेज हो रही है। इसके बावजूद मोबाइल विडियो का चलन तो निरंतर बढ़ ही रहा है और टीवी एक मनोरंजक माध्यम के रूप में अपनी पहचान बनाए रखने की लड़ाई लड़ रहा है।

मुकुल श्रीवास्तव
(लेखक स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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