20 14 से 2019 के ईसाई, दलित, भारत तेरे टुकड़े होंगे, लिंचिंग, असहिष्णुता और अवार्ड वापसी आंदोलनों के फेल होने के बाद अब वामपंथियों-मोदी विरोधियों ने भारत के मुसलमानों को गुमराह कर सडकों पर उतारा है। पुराने सभी आंदोलनों में वामपंथी विचारधारा के छात्र, कलाकार, कवि, कहानीकार, साहित्यकार, फिल्मकार शामिल थे। वे सभी के सभी अब मुस्लिम आन्दोलन में भी देखे जा सकते हैं।
उदाहरण के तौर पर टुकड़े-टुकड़े गैंग के कन्हैया को जामिया मिलिया में हिंसा वाले दिन वहां देखा गया था। अगले दिन उस ने छात्रों को सबोधित भी किया। इसी तरह टुकड़े टुकड़े गैंग का दूसरा नायक उमर खालिद जामा मस्जिद क्षेत्र में भीड़ को भड़काता देखा गया , उसे हिरासत में भी लिया गया। इसी तरह राम चन्द्र गुहा, अरुंधती राय, तीस्ता शीतलवाड़, स्वरा भास्कर तोजावेद अख्तर की जगह उन के बेटे फरहान अख्तर ने ले ली।
लब्बोलुबाब यह है कि ये सभी वास्तव में वामपंथी लोग हैं , वामपंथी दल जहां भी चाहें इन का इस्तेमाल कर लेते हैं , खासकर राष्ट्रपति और संयुक्त राष्ट्र को चिठ्ठियाँ लिखने के लिए। अब तो कांग्रेस जैसी महान पार्टी भी वामपंथी दलों की पालतू सूची में शामिल हो गई है। पिछली बार वामपंथियों ने राहुल गांधी का जेएनयू और हैदराबाद में रोहित वेमूला आन्दोलन में इस्तेमाल किया था तो इस बार प्रियंका गांधी और सोनिया गांधी का इस्तेमाल कर रहे है।
कांग्रेस भूल गई कि 1985 में भी राजीव गांधी ने यही गलती की थी , जब राजीव गांधी ने इसी तरह की मुस्लिम भीड़ के दबाव में आ कर शाहबानों के गुजारा भत्ता क़ानून को बदल दिया था। मजहबी भीड़ के साथ मिल कर नागरिकता क़ानून में संशोधन का विरोध करके कांग्रेस ने सेक्यूलरिज्म को भी सूली पर चढा दिया। मुसलमानों की यह मांग सेक्यूलरिज्म पर आधारित नहीं है कि तीनों इस्लामिक देशों के मुस्लिमों को भारत में नागरिक्ता देने के लिए वैसी ही छूट दी जाए जैसी इन देशों के अल्पसंख्यकों को दी गई है| यह मांग शुद्ध साम्प्रदायिक आधार पर की जा रही है| अब तो यह भीड़ दूसरे खिलाफत आन्दोलन और हिन्दुओं से लेंगे आज़ादी के नारे भी लगाने लगी है। कांग्रेस इस विभाजनकारी खिलाफती आन्दोलन का समर्थन करके उसी गलती को दोहरा रही हैजो गांधी ने की थी। गृहमंत्री अमित शाह ने स्पष्ट कर दिया है कि मोदी सरकार हिंसक आन्दोलन के आगे नहीं झुकेगी। जामिया मिलिया में पुलिस के घुसने का भी अमित शाह ने बचाव किया है। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि बसों में आग किस ने लगाई थी, आग लगाने वाले विश्वविध्यालय में घुसे थे या नहीं, विश्व विद्धालय के भीतर से पुलिस पर पत्थर चले थे या नहीं?
साफ़ है कि मोदी सरकार हिंसा के आगे झुकने वाले पुराने नियम कायदे बदल देरही है। जनसंख्या क़ानून से पहले भारत की नागरिकता का रजिस्टर बनाना मोदी सरकार का अगला बड़ा लक्ष्य है। कांग्रेस सरकारें इस काम को जानबूझ कर लटकाती रही थीक्योंकि भारत में जैसे जैसे शिक्षा का विस्तार हो रहा था , वैसे वैसे उस का वोट बैंक घट रहा था , जिसकी भरपाई घुसपैठियों से की जा रही थी। उन्हें बिना नागरिकता के ही वोटर बनाया जाता था। अब अगला लक्ष्य दुनिया के विकसित देशों की तरह नागरिकता पहचानपत्र और रजिस्टर नम्बर अलाट करना होगा , जिसे एनआरसी कहा जा रहा है।
लेकिन देश भर का एनआरसी असम जैसा नहीं होगा| असम में बांग्लादेशियों की घुसपैठ के कारण नागरिकता का विवाद था। भारत के संविधान में अनुच्छेद 5 से 9 तक नागरिकता की परिभाषा स्पष्ट है। एनआरसी की संरचना उसी के मुताबिक़ होगी। निम्नलिखित 9 आधार एनआरसी में नाम दर्ज करवाने के लिए पर्याप्त होंगे- 1.जमीन के दस्तावेज जैसे- बैनामा, भूमि के मालिकाना हक का दस्तावेज। 2 राज्य के बाहर से जारी किया गया स्थायी निवास प्रमाणपत्र। 3.भारत सरकार की ओर से जारी पासपोर्ट। 4. किसी भी सरकारी प्राधिकरण द्वारा जारी लाइसेंस/प्रमाणपत्र। 5. सरकार या सरकारी उपक्रम के तहत सेवा या नियुक्ति को प्रमाणित करने वाला दस्तावेज। 6. बैंक/डाक घर में खाता। 7. सक्षम प्राधिकार की ओर से जारी किया गया जन्म प्रमाणपत्र। 8. बोर्ड/विश्वविद्यालयों द्वारा जारी शिक्षण प्रमाणपत्र। 9. न्यायिक या राजस्व अदालत की सुनवाई से जुड़ा दस्तावेज।
लेकिन अगर कोई किसी के दस्तावेज को चुनौती देगा तो उसे और प्रमाण देने पड सकते हैं। सभी को असम की तरह लाईन लगा कर मारे मारे नहीं फिरना पडेगा। वामपंथी एनआरसी का भ्रम फैला कर मुसलमानों को भडका रहे हैं।
अजय सेतिया
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं