वास्तव में मनुष्य के सभी दुखों का कारण भगवान ही है। जरा-सी भी समझ नहीं है या तो पानी गिराएगा नहीं और यदि गिराएगा तो इतना कि सांस नहीं लेने देगा। मतलब कि किसी करवट चैन नहीं। कैसा घटिया वाटर मनेजमेंट है। यदि ढंग से बरसे तो इतने पानी में सारे काम हो जाएं और निर्यात के लिए भी बच जाए। जब रामनाथ कोविंद जी राष्ट्रपति और वेंकैया जी उप राष्ट्रपति बने थे तो पत्रकार उनकी इन उपलब्धियों के कारण खोजकर लाए। कोविंद जी का पुश्तैनी घर टपकता था और वेंकैया जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में कबड्डी खेलने जाया करते थे। हम भी अपने जीवन में ये दोनों विशेषताएं पाते है लेकिन किसी ने वार्ड पञ्च के टिकट के लिए भी नहीं पूछा। यह बात और है कि कोविंद जी 300 कमरों वाले राष्ट्रपति भवन में पहुंच गए जबकि हमारे दो कमरों वाले घर की छत अभी भी टपकती है।
उपराष्ट्रपति बनने के बाद वेंकैया जी कबड्डी वाली टांग खिंचाई से बच गए लेकिन हमारी टांग तो जब पास बुक पूरी करवाने जाते हैं तो बैंक का क्लर्क ही कर देता है। रात बारिश में छत के रणनीतिक बिन्दुओं के नीचे बाल्टियां रखकर मोदी जी की सलाह के अनुसार जल-संग्रहण करते रहे है। इस चक्कर में सोने में देर हुई और बिना सत्ता-मद के भी सुबह हमारी आंख नहीं खुली। आंख तब खुली जब घर के दरवाजे पर ‘जय श्री राम’ का तुमुल नाद हुआ। हम मोदी-राज पार्ट टू से सीधे त्रेता में पहुंच गए? नींद में ही लगा- मंदिर बने बिना ही राम अयोध्या लौट आए या हनुमान संजीवनी बूटी ले आए या सीता माता की सुधि लेकर और लंका जलाकर लौट आए हैं। संकट मोचक पवनपुत्र का यह जयघोष। हम स्वप्न में ही खोए थे कि पुन: और जोर से वही तुमुल नाद हुआ।
हम उठे, कहीं राष्ट्र के विकास और एकता के लिए तथा कहीं धर्म की रक्षा के लिए नारा-युद्ध तो शुरू नहीं हो गया। नारे अपने कल्याण और दूसरों के उद्धार दोनों के लिए जरूरी होते हैं। मन मारकर उठे और दरवाजे पर देखा माथे पर पटका बांधे, हाथ में दंड लिए ऊर्ध्वमुख तोताराम चिल्ला रहा था- है किसी में दम तो आ जाए। रोकले हमें। हम किसी से नहीं डरते। लाठी-डंडे खाएंगे, प्राणों की भेंट चढ़ाएंगे लेकिन राम को नहीं बिसराएगें। हम उसके इस मर्मान्तक प्रलाप और विलाप का कारण समझ नहीं सके । हमने कहा- वत्स, कौन है जो तुम्हारी राम-भक्ति में बाधा डाल रहा है? अचानक इस जयघोष का क्या कारण है? राम तो अन्तर्यामी है। मूक और मौन जीवों तक की पुकार सुन लेते हैं। सुबह का समय है। चाय पी, अखबार पढ़, चर्चा कर, अपने मन की बात कर, दूसरों के मन की बात सुन।
फिर तसल्ली से नहा-धो और राम-रहमान जो भी तेरा मन करे, भज ले। किसने रोका है? लेकिन यह कौन-सा समय है नारे लगाने का? न कोई रामनवमी और न ही दशहरे का जुलूस निकल रहा है। बोला- बहुत हो चुका। अब ध्यान से सुन ले। अब राम का जयघोष अब नहीं करेंगे तो कब करेंगे? हमने पूछा- क्या ज्योतिष के अनुसार यह कोई शताब्दियों में बनने वाला अभिजित मुहूर्त है या मोदी जी नामांकन भरने की तरह सर्वार्थ सिद्धि या साध्य योग है? बोला- मुझे इतना तो पता नहीं लेकिन केरल के एक निलंबित पुलिस महानिदेशक जैकब थॉमस ने कहा है- ‘यही सही समय है और हमें ज्यादा से ज्यादा जय श्री राम कहना चाहिए’। हमने कहा- ये पुलिस के बड़े अधिकारी हैं ये सब कायदे-कानून जानते हैं। कब, किसे, क्या बोलना चाहिए। कब कि सको क्या बोलने के लिए गिरफ्तार किया जाना चाहिए और कब किसी कुछ भी बोलने पर भी छोड़ दिया जाना चाहिए।
बड़े अधिकारियों के अपने गणित होते हैं। तुझे पता होना चाहिए कि क्यों किसी अधिकारी को रिटायर होने के दूसरे दिन ही सरकार में राज्यपाल, मंत्री या किसी आयोग के अध्यक्ष का पद मिल जाता है? ये सब सही समय पर ‘जय श्री राम’ बोलने के ही परिणाम हैं। ये महाशय तो निलंबित हैं। इनके निलंबन को निरस्त करवाने में सरकार सहायक हो सकती है। केंद्र सरकार ‘भारत माता की जय’ के नारे की बजाय ‘जय श्री राम’ के नारे से अधिक खुश होती है। केरल में जहां भाजपा की एक भी सीट नहीं है वहां ‘जय श्री राम’ का नारा लगे और वह भी एक ईसाई के द्वारा। इससे सही समय और क्या हो सकता है जैकब साहब और भाजपा दोनों के लिए? लेकिन तेरे इस जय-जयकार का गणित हमारी समझ में नहीं आया। बोला- तेरे जैसे आदमी के लिए कहीं कोई जगह नहीं है। इतनी-सी बात भी नहीं समझा। अरे भले आदमी, यदि जय-जयकार मोदी जी ने सुन ली तो क्या पता एरियर दे दें। नहीं तो अगले जन्म के लिए ‘राम-नाम-बैंक ’ में जमा हो जाएगा।
रमेश जोशी
(लेखक वरिष्ठ व्यंगकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)