जनभावना तो समझनी पड़ेगी

0
311

यह अच्छी बात है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पार्टी को मजबूत करने की कोशिश कर रही है। अपना मानना है कि यह सोनिया गांधी का राजनीतिक दांवपेच वाला विजन ही था कि उन्होंने 1998 में पचमढी शिविर में लिए गए “एकला चलों” के निर्णय को बदल कर 2004 में पार्टी को सत्ता तक पहुंचा दिया। पार्टी को सिद्धांतों और नीतियों पर चलाने के लिए पचमढी में हुए फैसले को 2003 में शिमला में मुख्यमंत्रियों की बैठक में इसलिए बदल दिया गया था क्योंकि उस साल कांग्रेस तीन विधानसभाओं का चुनाव हार गई थी। पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने हाल ही में अपनी पुस्तक में खुलासा किया है कि वह 2003 में गठबंधन की राजनीति के फैसले के खिलाफ थे।

यहाँ अब हमे नीति और रणनीति में फर्क करना पड़ेगा। नीतियाँ समाज कल्याण और राष्ट्रहित को सामने रख कर बनाई जाती हैं जबकि रणनीति चुनाव जीतने के लिए बनाई जाती है। सोनिया गांधी की कांग्रेस 2003 से यह भेद करना भूल गई है जब से उन्होंने बागडौर सम्भाली है कांग्रेस का लक्ष्य सिर्फ सत्ता प्राप्ति हो गया है , जिस का खामियाजा उसे 2014 से भुगतना पड रहा है। गठबंधन की राजनीति के चलते यूपीए के दस सालों में क्या क्या कुकर्म नहीं नहीं हुए। कोयला घोटाले को गठबंधन की मजबूरी तक कहा गया। एक तरफ गठबंधन के चलते भ्रष्टाचार को पनाह दी गई तो दूसरी तरफ सरकार बचाने के लिए सांसदों की खरीद फरोख्त जैसे कुकर्म हुए।

अर्जुन सिंह जैसे लोगों ने सोनिया गांधी के दिमाग में भर दिया था कि बाबरी ढांचा टूटने के कारण मुसलमान उससे नाराज हैं , इसी लिए 1996 , 1998 और 1999 में कांग्रेस हारी। इसी का नतीजा था कि नरसिंह राव का दिल्ली में दाह संस्कार तक नहीं करने दिया गया। कांग्रेस कार्यालय में नरसिंह राव के शव का अपमान भी हुआ जबकि अयोध्या में रामजन्मभूमि पर लगा ताला तो राजीव गांधी ने खुलवाया था। यूपीए के दस साल के शासन में सिर्फ मुसलमानों को खुश कर के अगला चुनाव जीतने की रणनीति पर काम होता रहा। नीतियों और रणनीतियों का गढ़मढ हो गया, सरकारी संसाधनों पर मुसलमानों का पहला हक कहा गया। हिन्दुओं को आतंकवादी कहा गया। 26/11 के आतंकी हमले में आरएसएस का हाथ बताया गया। यह नहीं सोचा कि कांग्रेस की इन नीतियों से हिन्दू कितना खफा हो रहा है।

कांग्रेस फिर से खडी हो सकती है, बशर्ते अपनी अब तक की उन नीतियों की समीक्षा करे जिनके कारण देश का बहुसंख्यक हिन्दू समाज उस से रुष्ट हुआ है। भाजपा को पता है कि हिन्दू समाज किन आकांक्षाओं के कारण उस के साथ जुड़ा है। इस लिए वह उन जनाकांक्षाओं पर काम कर रही है। अपार बहुमत के बावजूद वह उन्हें भूली नहीं है। इसलिए संसद के पहले ही सत्र में तीन तलाक और 370 खत्म हो जाता है। समान नागरिक संहिता , गौहत्या पर प्रतिबंध और रामजन्म भूमि एजेंडे पर वह आगे बढ़ रही है।

यह तो स्वाभाविक था कि कश्मीर में 370 हटाने का विरोध होगा क्योंकि उस के तहत मिले विशेषाधिकारों के कारण ही वे कश्मीर को भारत से अलग रखने में कामयाब रहे थे। अभी सरकारी पाबंदियों के कारण आक्रोश दबा हुआ है , वह विद्रोह की हद तक जा सकता है लेकिन कश्मीरी मुसलमानों के विरोध को आधार बना कर कब तक कश्मीर का पूर्ण विलय रोके रखा जाना था? कांग्रेस के लिए यह एक स्वर्णिम अवसर था कि वह राष्ट्रीय भावनाओं के अनुकूल निर्णय लेती> लेकिन 72 साल बाद भी वह महाराजा हरी सिंह के बेटे डा. कर्ण सिंह के साथ खड़े होने की बजाए शेख अब्दुल्ला के बेटे फारूख अब्दुला के साथ खडी है , जिस के कुशासन के कारण घाटी में आतंकवाद ने पैर जमाए।

सोनिया गांधी की कोशिशों से कांग्रेस तब तक खडी नहीं होगी जब तक अपनी नीतियाँ नहीं बदले। पर उसे अपनी गलतियों का अहसास नहीं तो वह बदलेगी क्या। मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण कांग्रेस के नेता 370 को आधार बना कर सुप्रीमकोर्ट पर हमला करने में भी परहेज नहीं कर रहे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा का यह बयान घोर आपतिजनक है कि सुप्रीमकोर्ट 370 जैसे जनभावनाओं से जुड़े मुद्दों पर जानबूझ कर जल्द निर्णय नहीं दे रही। असल में समस्या यह है कि कांग्रेस जनता से कट चुकी है , वह जनभावनाएं समझती ही नहीं।

अजय सेतिया
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here