छाया वीर रस का मौसम

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पहली पोर्टब्लेयर में दूरदर्शन का छोटा रिले स्टेशन स्थापित हुआ और दूसरी-दूरदृष्टि और पक्के इरादे वाले बहुत से सयाने लोगों ने कोरिया के छोटे ब्लेक ऐंड वाइट टी.वी.सेट पांच-पांच हजार रुपये में बेचे, जो आज के हिसाब से कम से कम 50-60 हजार रुपये के बराबर थे। एशियाड खेल खत्म होने के बाद कुछ लोगों ने वीसीआर के द्वारा फिल्मों के वीडियो कैंसेट छोटे टी.वी. सेटों पर दिखाने वाले ट्यूरिंग टाकीज ही शुरु कर दिए।

सन 1982 एशियाड खेलों के दौरान हम पोर्ट ब्लेयर में थे। तब वहां विकास की दो बड़ी घटनाएं हुई। पहली-पोर्टब्लेयर में दूरदर्शन का छोटा रिले स्टेशन स्थापित हुआ दूसरी-दूरदृष्टि और पक्के इरादे वाले बहुत से सयाने लोगों ने कोरिया के छोटे ब्लेक ऐंड वाइट टी.वी.सेट पांच-पांच हजार रुपये में बेचे, जो आज के हिसाब से कम से कम 50-60 हजार रुपये के बराबर थेष एशियाड खेल खत्म होने के बाद कुछ लोगों ने वीसीआर के द्वारा फिल्मों के वीडियो कैंसेट छोटे टी.वी. सेटों पर दिखाने वाले ट्यूरिंग टाकीज ही शुरु कर दिए।

उसी युग में 1983 में गांधी फिल्म वहां पहुंची। बच्चों में देश-प्रेम जागृत करने के लिए यह फिल्म इन्हीं छोटी टीवी सेटों पर स्कूलों में दिखाई गई। हमने भी विद्यार्थियों के साथ इसे देखा। व्यवस्था और दिखाने वालों के बीच कौन-सा बोफोर्स या राफाल हुआ, हमें पता नहीं। चित्र इचने छोटे थे कि यदि टोपी का अंतर नहीं होता तो जिन्ना और नेहरू में फर्क नहीं कर पाते। जब अपनी जेब से पैसे देने वाले ग्राहक की ही कोई फरियाद नहीं सुनी जाती तो हमने तो यह फ्री में देखी थी। मुफ्त के माल में कोई उपभोक्ता-अधिकार नहीं होते। जब गांधी और गोडसे के र्फक को समाप्त करने की विधिवत योजना चल रही है तो नेहरू और जिन्ना का क्या जिक्र। आज जब भारत में 70 करोड़ लोग हनुमान चालीसा के आकार के स्मार्ट फोन पर देश-दुनिया की ज्ञानवर्धक जानकारी तत्काल प्राप्त कर सकते हैं तो ‘गांधी’ फिल्म की क्या चर्चा करें।

अब हम और तोताराम दोनों को सबके विकास में अपना साथ मिल गया है। पोतों ने अपने पुराने सेट हमें गिफ्ट कर दिए हैं। वैसे भी सीखने के लिए साइकल पुरानी ही ठीक रहती है औ कपड़े भी, हां घुटने पुराने नहीं मिलते। वे तो नए-पुराने जैसे भी हैं अपने ही फुड़वाने पड़ते हैं। कुछ दिन पहले हमने स्मार्ट फोन पर एक वीडियो क्लिप देखी। भारतीय जनता पार्टी के सांसद शरद त्रिपाठी और मेहदावल विधानसभा सीट से भाजपा विधायक राकेश सिंह के बीच एक कार्यक्रम के दौरान ‘सार्थक संवाद’ हो गया। हमने तोताराम को वीडियों दिखाते हुए कहा-जहां विरोधी राजनीतिक दल तक दुनिया को देश की एकता के मेसेज दे रहे हैं वहां तुम्हारी पार्टी के ये सेवक क्या कर रहे है? देखा यह वीडियो? बोला हां, देखा है? क्यों क्या हुआ? हमने कहा-अब और क्या होना है? बड़े माननीय अर्थात विधायक जी घूंसों से उनका मुकाबला कर रहे हैं।

बोला यही तो आतंरिक लोकतंत्र है। हमने कहा-तो क्या आतंरिक लोकतंत्र ऐसा होता है? गांधी और सुभाष में कुछ बातों क लेकर सहमति नहीं थी, पटेल और नेहरू में भी सभी मामलों पर पूर्ण सहमति नहीं थी लेकिन उनके बीच तो कभी ऐसा नहीं हुआ। मोदी जी ने भरी सभा में मंच पर अडवाणी जी के नमस्कार का उत्तर नहीं दिया लेकिन क्या कोई विवाद हुआ? बोला-यही तो मैं तुझे मसझाना चाहता हूं कि यही तो है सच्चा आंतरिक लोकसभा। देख, सबके पहले तो जहां घटना हुई उस जिले का नाम है संतकबीरनगर। दोनों यहीं के सांसद और विधायक है। इस देश में क्या ‘संत कबीर’ से बड़ा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मुरखता का कोई उदाहरण है? और फिर शरद जी बेस्ट संसद अवार्ड से सम्मानित भी तो हैं।

रमेश जोशी
लेखक जाने-माने व्यंगकार हैं

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