आम चुनाव गुजर गया लेकिन दिल दुखाने वाले बोल बदस्तूर जारी है। हालांकि जीत के बाद संसद के सेंट्रल हाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पार्टी के सांसदों को ताकीद की थी कि वे ऐसी बात ना बोलें जिससे माहौल बिगड़े। उनका सीधा इशारा देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक बिरादरी की तरफ था। उस दिन उन्होंने सबका विश्वास जीतने की तरफ कदम बढ़ाने का इरादा भी जाहिर किया था। इसी सिलसिले में पहली बार उनकी तरफ से मुस्लिम बिरादरी को उर्दू जुबान में ईद की मुबारक बाद ट्वीट की गई। पर विसंगति वही पहले जैसी। उनके साथी-संगी ही कोई ना कोई ऐसा जुमला उछाल देते हैं कि सारे कि ए-धरे पर पानी फिर जाता है। पिछले कार्यकाल में भी केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह अपने अटपटे बयानों को लेकर चर्चा में रहे थे। कोई बात नागवार गुजरी कि सीधे संबंधित शगस को पाकिस्तान जाने की सलाह दे बैठते थे।
इस नये कार्यकाल में प्रधानमंत्री की तमाम नेक दिल नसीहतों के बावजूद गिरिराज सिंह जैसी शख्सीयतें तीखे बोल से बाज नहीं आ रहीं। पिछले दिनों इफ्तार पार्टी में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सिर पर टोपी वाली फोटो टैग कर गिरिराज सिंह ने सियासी तुष्टिकरण का आरोप लगाया था। उस पर बयानबाजी तेज तो हुई पर समय रहते गृहमंत्री अमित शाह की कड़क सलाह से बात आई-गई हो गई। ऐसे ही एक अन्य भाजपा सांसद भोला सिंह ने भी ईद के दिन मुस्लिम बिरादरी को निशाना बनाया और सडक़ पर उनके इबादत को लेकर सवाल खड़े किए। जाहिर तौर पर इस सबकी कोई जरूरत ना थी। पर एक तरह से सियासी वैमनस्यता का माहौल तैयार करते रहने की कोशिश दरअसल पूरे माहौल को प्रभावित करती है। शायद इस तथ्य का इन बयानवीरों को कतई ध्यान नहीं रहता और रहे भी क्यों?
अब तक किस विवादास्पद बोल पर कौन दण्डित हुआ है। इसीलिए तीखी बयानबाजी करने वालों को किसी का डर नहीं रहता। लेकिन इससे अल्पसंख्यक बिरादरी में असुरक्षा का बोध और मजबूत होता है। ऐसा नहीं है कि तीखे बोलों के किरदार भाजपा में ही हैं। दूसरे दलों की भी कमोबेश यही स्थिति है। एक-दूसरे सम्प्रदाय के प्रति भय का माहौल पैदा करके उसका सियासी लाभ लेने की कोशिशों पर विराम लगाने के लिए ही प्रधानमंत्री ने छल में छेद करने की बात कही थी। लेकिन दो हफ्ते भी नहीं हुए नई सरकार के और तीखे बोलों का सिलसिला फिर शुरू हो गया है। ऐसे लोगों को सिर्फ मना करने से तस्वीर नहीं बदलेगी। कार्रवाई भी होनी चाहिए, ताकि बोलने से पहले अंजाम भी ध्यान में रहे। अल्पसंख्यक समाज की यही तो शिकायत है कि बड़बोलों पर कार्रवाई नहीं होती। बेशक ओवैसी जैसे नेताओं के बयानों की भी एक हद तय होनी चाहिए ताकि अनावश्यक विवाद पर रोक लगाई जा सके ।