चुनाव की बेला, कहीं उत्तरायण तो कहीं दक्षिणायन

1
802

एक दो दिन तो सोचा, चलो, रोजाना की परनिंदा से पीछा छूटा। कुछ दिन शान्ति से भगवान को याद करेंगे। लेकिन भगवान भी आदमी को दुःख में ही याद आते हैं। जरा-सा सुख मिला नहीं कि फिर वही छल-छंद चालू। अपने देश में याद करते ही सामने वाले के पास आत्मिक समाचार पहुंच जाने की जबरदस्त तकनीक है।

चूंकि हम बेंगलुरु में हैं और तोताराम के पास यहां चाय पीने के लिए आने की कोई व्यवस्था नहीं है। यदि उसके पास व्यक्तिगत हवाई जहाज होता तो कोई आश्चर्य नहीं कि वह यहां चाय पीने के लिए आ धमकता। एक दो दिन सोचा, चलो, रोजाना की परनिंदा से पीछा छूटा। कुछ दिन शान्ति से भगवान को याद करेंगे। लेकिन भगवान भी आदमी को दुःख में ही दाय आते हैं। जरा-सा सुख मिला नहीं कि फिर वही छल-छंद चालू।

अपने देश में याद करते ही सामने वाले के पास आत्मिक समाचार पहुंच जाने की जबरदस्त तकनीक है। सो हमारे सोचते ही फोन की घंटी बजी, आवाज तोताराम की थी। बोला-मास्टर, गुड़ मोर्निंग। लगता है बरामदे में बैठा चाय पी रहा है। तेरे वहां तो सूर्य उत्तरायण हो गया लेकिन यहां तो सूरज का ही पता नहीं हैं। उत्तरयण-दक्षिणायन की क्या कही जाए। हमने कहा कि इस दुनिया में एक सूरज है और वह अपने नियमों के अनुसार उत्तरायण-दक्षिणायन होता रहता है।

बोला-नहीं, ऐसी बात नहीं है। मैंने आज सुना है कि बेंगलुरु में सूर्य उत्तरायण हो गया। वहां हर संसदीय क्षेत्र में लोगों के मन की बात जानने के लिए भारत के मन की बात नामक रथ घुमने लगे है। लोग उन रथों में बैठ जन-सेवकों को अपने मन की बात सकेंगे। उसी के आधार पर पार्टी अपना चुनाव घोषणा-पत्र तैयार करेगी। हो सकता है मन की बात के साथ-साथ उनसे अपने प्रश्नों के उत्तर भी मिल जाएं। यहां तो अभी मौसम और जन-मन की बात दोनों के मामले में दक्षिणायन ही चल रहा है। हो सके तो तू मुझे तत्काल फोन कर देना। हल्ला करे तो फोन के पैसे बेकार करने की जरूरत नहीं है।

हमने कहा कि उतावला मत हो। जल्दी ही सीकर में मिल लेना। ऐसे ही किसी देश के मन की हाल वाले रथ में और जन सेवकों से जान लेना सभी प्रश्नों के उत्तर। अब मई तक देश में ये ही नहीं, और भी कई तरह के रथ ही रथ घूमेंगे। वह बात अगल है कि उसके बाद जनता पथ, पथ में इन्हें ढूंढती फिरेगी औऱ फिर यदि ज्यादा ही जल्दी है तो मानवता के सभी प्रश्नों का उत्तर दे सकने में समर्थ उत्तर से लेकर परमात्मा तक के सभी प्रश्नों के उत्तर।

बोला-बन्धु, वहां तो हालत बहुत खराब है। कैसे उत्तर, सभी प्रश्नों पर शीत-लहर की ठिठुरन पड़ी हुई है। हमने कहा कि लेकिन डरने की क्या हात है। अब भी देश-दुनिया के भक्त, गंगा की गंदगी से बेखबर, आस्था के बल पर, संगम में डुबकी लगा ही रहे हैं और अपने-अपने पाप बहा ही रहे हैं। तू भी लगा दे एक डुबकी। या तो इस पार या उस पार। या तो मोक्ष या अमित शाह की तरह वराह ज्वर।

बोला ठीक है, अभी तो नहीं लेकिन तू आ जा। इस बारे में विचार करेंगे। तब तक शायद यह ठिठुरन भी कम हो जाएगी और तरह-तरह के अखाड़ों की अखाड़ेबाजी भी। हमने कहा कि इस देश में अखाड़ेबाजी भी हमने कहा कि इस देश में अखाड़ेबाजी कभी कम नहीं हो सकती जैसे कि हर मौसम चुनावों का मौसम होता है। कभी लोकसभा, कभी विधान सभा तो कभी नगर निकाय। और कुछ भी नहीं छात्र संघों के चुनाव ही सही।

रमेश जोशी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

1 COMMENT

  1. Very efficiently written article. It will be valuable to anybody who employess it, including myself. Keep up the good work – i will definitely read more posts.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here