चिदंबरम खाला का घर की समझ बैठे थे

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कांग्रेसी नेता और पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम की गिरफ्तारी को इतना नाटकीय रुप देने की जरुरत क्या थी? यदि उच्च न्यायालय ने उन्हें अग्रिम जमानत नहीं दी तो कौन सा आसमान टूट रहा था ? वे गिरफ्तार ही तो होते। कोई नेतागीरी करे और गिरफ्तारी से डरे, यह बात तो समझ के परे हैं। जब प्र.मं. चरणसिंह ने इंदिरा गांधी को गिरफ्तार किया था तो वे कही छिपती फिरी थीं, क्या ? कोई बड़ा आदमी या नेता गिरफ्तार होता है तो जेल में उसे कम से कम ‘बी’ श्रेणी में रखा जाता है। उसे घर से भी ज्यादा आराम जेल में मिलता है।

अब से 62 साल पहले (1957) मैं पटियाला जेल में रहा और उसके बाद भी कई बार कई जेलों में रहा। अपने अनुभव के आधार पर मुझे चिदंबरम के व्यवहार पर आश्चर्य होता है। यदि उन्होंने, उनकी पत्नी, बेटे और बहू ने भ्रष्टाचार की हेरा-फेरी नहीं की है तो उन्हें डर किस बात का है ? उन्होंने खुद को बचाने के लिए कांग्रेस पार्टी के दफ्तर में पत्रकार परिषद की। इसका अर्थ क्या है ? हम तो डूबे हैं, सनम! तुमको भी ले डूबेंगे।

चिदंबरम की चिलम अब कौन-कौन भर रहा है ? प्रियंका गांधी, जिसके पतिदेव खुद कई मामलों में फंसे हुए हैं। चिदंबरम शायद ऐसे पहले वित्तमंत्री हैं, जो सींखचों के पीछे गए हैं। वैसे तो आज शायद ही कोई ऐसा नेता मिल सके, जो सींखचों के पीछे जाने लायक न हो। चुनावी राजनीति होती ही ऐसी हैं कि वह किसी नेता को बेदाग नहीं रहने देती। जब उनके विरोधी सरकार में होते हैं, उनकी शामत आ जाती है। उनमें से कुछ ब्लेकमेल होते रहते हैं, कुछ सत्तारुढ़ दल के चरणों में लेट जाते हैं और कुछ अपनी दुकान ही समेट लेते हैं।

यदि, चिदंबरम आगे होकर गिरफ्तार हो जाते और अदालत उन्हें निर्दोष पाती तो यह अकेली घटना ही मोदी की छाती पर पत्थर बन जाती लेकिन जो नौटंकी हुई उससे लगता है कि कांग्रेस अपने कई अन्य नेताओं के जेल जाने की आशंका से घबराई हुई है। यदि मोदी सरकार देश को सचमुच भ्रष्टाचार-मुक्त करना चाहती है तो उसे यह स्वच्छता-अभियान अपनी पार्टी से ही शुरु करना चाहिए। हर विधायक और सांसद की जांच होनी चाहिए कि उनके पास इतनी चल-अचल संपत्ति कहां से आई ?

वे कोई उत्पादक काम नहीं करते। एक कौड़ी भी नहीं कमाते। उन सबका यह ठाठ-बाट कैसे निभता रहता है? यह राजनीति है। तुम्हारी खाला (मौसी) का घर नहीं है। यह कौटिल्य की झोपड़ी है। इसमें प्लेटो का ‘दार्शनिक राजा’ रहता है। वह अपना सिर हथेली पर धरकर चलता है। संत कबीर ने क्या खूब कहा हैः
यह तो घर है, प्रेम का,
खाला का घर नाय !
सीस उतारे कर धरे,
सो पैठे इस घर माय।।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं…

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