चमत्कारों पर ही भरोसा

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दिल्ली में कोरोना के मामलों में कई दिनों तक दिखी तेज बढ़ोतरी के बाद बीते रविवार को ये खबर प्रचारित हुई कि यहां के हाल पर विचार के लिए गृह मंत्री अमित शाह ने बैठक बुलाई है। शनिवार तक दिल्ली के रोजाना के नए संक्रमण और मौतों के आंकड़े रात तक आते थे। कई दिनों से नए संक्रमण के मामले साढ़े सात से साढ़े आठ हजार के बीच आ रहे थे। लेकिन प्रस्तावित बैठक का असर यह हुआ कि रविवार को दोपहर ही आंकड़े जारी हो गए। संख्या साढ़े तीन हजार तक घट गई। फिर सोमवार को भी लगभग यही तादाद रही। इसे जादू ही कहा जाएगा। ये जादू दोहराया गया है। कुछ महीने पहले जब दिल्ली में कोरोना संक्रमितों की रोजाना संख्या में तेज बढ़ोतरी हुई थी, तब भी ऐसा ही हुआ था। गृह मंत्री ने कमान संभाली और मामलों में तेज गिरावट आ गई। ऐसा कैसे होता है, यह हम सबके लिए माथापच्ची की बात है। बहरहाल, ये खबर भी आई है कि भारत सरकार फाइजर कंपनी से उसके आने वाले कोरोना के टीके को भारत लाने के लिए बातचीत कर रही है।

ऐसी खबर मॉडेर्ना कंपनी के टीके के बारे में भी जरूर आएगी। जब रूस में टीका बना था। तब भी आई थी। ये तमाम खबरें देश की बहुत बड़ी जनसंख्या को राहत बंधाती हैं। और कहा जाता है कि राहत हो तो सब्र बंधा रहता है। गौरतलब है कि मॉडेर्ना कंपनी ने एलान किया है कि उसकी वैक्सीन 94.5 फीसदी असरदार है। एक हफ्ते पहले ही मॉडेर्न की प्रतिद्वंद्वी अमेरिकी कंपनी फाइजर ने 90 फीसदी सफल वैक्सीन का दावा किया था। फाइजर ने जर्मन स्टार्ट अप बियोनटेक के साथ मिलकर अपनी वैक्सीन बनाई है। फाइजर के एलान के कुछ ही घंटों बाद रूसी वैज्ञानिकों ने भी स्पुतनिक-5 वैक्सीन की सफलता का एलान किया। फाइजर के एलान के बाद दुनिया भर में उसके शेयरों के भाव उछल गए। जबकि उसे और मॉडेर्ना दोनों को अभी ये भरोसा ही है कि दिसंबर में अमेरिकी प्रशासन उसकी वैक्सीन को इमरजेंसी के तहत मंजूरी देगा। फेज-3 के इन शुरुआती नतीजों के बाद ये ड्रग कंपनियां हजारों पन्नों का दस्तावेज प्रशासन को सौपेंगी। उस दस्तावेज में क्लीनिकल ट्रायल के हर चरण और संभावित जोखिमों का जिक्र होगा। दस्तावेज पढ़ने के कुछ हफ्ते बाद इमरजेंसी के तहत ऐसी मंजूरी दी जा सकती है। यानी सब कुछ अभी संभावनाओं की गोद में है। जब तक ये साकार हों, चमत्कारों पर ही भरोसा करना होगा!

हाल ही में हुए एक अध्ययन के अनुसार भारतीयों के बीच कोरोना संक्रमित होने के मुकाबले अर्थव्यवस्था और निजी आमदनी बड़ी चिंता का विषय है। यानी देश में अधिकतर लोग बीमार पडऩे की तुलना में खाना, रोजगार और दवाओं की उपलब्धता को लेकर ज्यादा चिंतित हैं। ये स्थिति बताती है कि लॉकडाउन ने कैसे लोगों की कमर तोड़ दी और अब कैसे लोग जिंदगी बचाने से ज्यादा अपने जहान को लेकर फिक्रमंद हो गए हैं। संभवत: यही वजह है कि बाजारों से लेकर परिवहन तक में लोगों की भीड़ अब काफी देखने को मिलती है। यानी सोच यह बन गई है कि अगर कोरोना वायरस से बच भी गए तो भूखों मरने की नौबत आ सकती है। इसलिए लोग इस बात की ज्यादा चिंता करने लगे हैं कि जब तक जिंदा हैं, कैसे खाते-पीते जीवित रहें? जबकि वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि उत्तर भारत में सर्दियों में बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण आने वाले महीनों में वायरस संक्रमण में तेजी आ सकती है। वायु प्रदूषण संक्रमण को बढ़ावा देता है। डॉक्टरों का कहना है कि त्योहारों के समय भी वायरस फैल सकता है। यह बीमारी बेहद संक्रामक है और आने वाले कुछ महीनों में बीमारी में एक और उछाल देखा जा सकता है, जैसा यूरोप अभी हो रहा है।

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