गीता का सार

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न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो।

यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा।

परन्तु आत्मा स्थिर है। फिर तुम क्या हो?

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