क्या आर्य बाहर से आए थे ?

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पिछले डेढ़-दो सौ सालों से भारत में यह भ्रम फैलाया गया है कि आर्य लोग बाहर से आए, उन्होंने भारत पर आक्रमण किया और उन्हें भारत के मूल निवासियों को मार कर दक्षिण में खदेड़ दिया। अब इस भ्रम की जबर्दस्त काट हो गई है। हरियाणा के राखी गढ़ी नामक स्थान से निकले हजारों वर्ष पुराने दो कंकालों के वैज्ञानिक विश्लेषण ने सिद्ध कर दिया है कि आर्य लोग भारत के ही मूल निवासी थे तथा उनमें और द्रविड़ों में कोई आनुवांशिक अंतर नहीं है।

पांच हजार साल पुराने इन कंकालों की वैज्ञानिक पड़ताल 28 वैज्ञानिकों के दल ने पिछले तीन साल में पूरी की है। उनका निष्कर्ष यह है कि अफगानिस्तान से अंडमान तक के निवासियों का मूल शारीरिक चरित्र (जीन्स) बिल्कुल एक-जैसा है। सबके पूर्वज एक-जैसे थे। बाहरी देशों या क्षेत्रों के लोगों के भारत-आगमन के कारण कुछ मिलावट जरुर हुई है लेकिन भारतीय लोगों का शारीरिक मूल एक-जैसा ही है।

यह कहना भी गलत है कि विदेशियों ने यहां आकर भारतीयों को खेती करना सिखाया। भारतीय लोग हजारों साल से उन्नत खेती करते रहे हैं और उनके हजारों साल पुराने हवन-कुंड भी राखी गढ़ी में मिले हैं। इसी प्रकार संस्कृत दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा है, जिसका प्रभाव फारसी, लेटिन और ग्रीक और जर्मन भाषाओं पर भी देखा जा सकता है। इस वैज्ञानिक खोज ने अंग्रेजों और हमारे वामपंथियों के दावों को रद्द कर दिया है।

अंग्रेजों ने अपनी सांस्कृतिक दादागीरी को सही दर्शाने और अपने अंग्रेजी राज का औचित्य ठहराने के लिए जो यह फर्जी कहानी गढ़ी थी, वह अब ध्वस्त हो गई है। मोनियर विलियम्स और मेक्समूलर की नकली अवधारणाओं को इस नई खोज ने शीर्षासन करवा दिया है। अब इस सत्य पर मुहर लग गई है कि संपूर्ण दक्षिण एशिया ही आर्यावर्त्त है, एक परिवार है, एक वंश है।

अंग्रेजों और कार्ल मार्क्स के चेलों की खुराफात का परिणाम था कि बाल गंगाधर तिलक जैसे महान राष्ट्रवादी नेता ने आर्यों का उदगम स्थल उत्तर ध्रुव को बता दिया था। कई प्रसिद्ध वामपंथी इतिहासकार, जो प्राचीन भारतीय इतिहास के विख्यात विशेषज्ञ हैं, उन्हें मामूली संस्कृत भी आती होती तो वे इतनी बड़ी भूल नहीं करते। आर्य समाज के प्रणेता महर्षि दयानंद ने वेद, उपनिषद और स्मृति ग्रंथों के आधार पर डेढ़ सौ साल पहले ही सिद्ध कर दिया था कि आर्य लोग भारत के ही मूल निवासी हैं और वे ही यहां से सारी दुनिया में फैलते रहे हैं।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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