कोरोना के खिलाफ मोर्चेबंदी

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कोरोना को लेकर मोदी सरकार ने अब 2 अप्रैल तक प्रदेश के सभी स्कूल-कॉलेज बंद रखने का आदेश दिया है। अभी यह सक्रमण दूसरे चरण में है लेकिन इसके तीसरे चरण में पहुंचने की रफ्तार को जितना धीमा रखने में कामयाबी मिलेगी, उतना ही कम इससे जनहानि होगी। सामुदायिक स्तर पर इसके संक्रमण को रोकने की कोशिश में सरकारें, स्वास्थ्य एजेंसियां तो अपना काम कर ही रही हैं लेकिन इसी के साथ बड़े स्तर पर जनसहयोग की भी जरूरत होती है। विशेषज्ञों की मानें तो अभी एक महीने की अवधि इसको लेकर पूरी तरह सतर्क रहने की है। कोरोना से महाराष्ट्र में एक और बुजुर्ग की मौत के बाद इससे मरने वालों की संख्या तीन हो गई है। यह सही है कि यह वायरस बच्चों और बूढ़ों के लिए ज्यादा खतरनाक होता है, इसीलिए बचाव और जागरूकता की इसमें बड़ी भूमिका है। केन्द्र सरकार की एडवाइजरी के बाद मास्क और सैनिटाइजर की उपलब्धता सुनिश्चित हो, इसकी पूरी तैयारी शासन स्तर पर चल रही है। खबरें थीं कि कई स्थानों पर स्टॉक में बिल दिखाकर कालाबाजारी हो रही है और नकली सैनिटाइजर बाजार में उतारे जा रहे हैं।

ऐसी परिस्थिति में सख्ती की सरकार है, उम्मीद है प्रशासनिक अमला अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करेगा। कोरोना को लेकर जिस हर चीन, इटली, ईरान और अमेरिका में भी सामुदायिक स्तर पर संक्रमण रोकने के मामले सामने हैं और भारी जनहानि के आंकड़े सामने हैं, इसे देखते हुए राज्यसभा में चिंता व्यक्त की गई। सांसदों के सवालों के जवाब में स्वास्थ्य मंत्री ने केन्द्र के स्तर पर तैयारी, सहयोग और निगरानी के साथ ही राज्य सरकारों के साथ समन्वय स्थापित करके जनसेवा संक्रमण को रोकने का भरोसा दिलाया। अभी तक देश के भीतर इस संकट से निपटने के तरीके पर शीर्ष नेतृत्व की सराहना भी हो रही है। ध्रुव विरोधी पी. चिदंबरम को भी लगता है कि केन्द्र सरकार की मुस्तैदी अपेक्षा के अनुरूप है। यह बात और है कि शशि थरूर और अधीर रंजना को ऐसा नहीं लगता। वैसे पीएम जानते हैं कि बाहर से संक्रमण की गति दूसरे चरण तक जितनी बाधित की जा सकेगी, सामुदायिक स्तर पर चुनौती उतनी ही कम होगी। इसी आशय से मनोबल बढ़ाते हुए देश के लोगों की उन्होंने भी सराहना की है। इस वक्त सबसे बड़ी जरूरत एकजुटता की है। सतर्कता, सहयोग और जागरूकता सामुदायिक स्तर पर तथा सरकार के स्तर पर आवश्यकतानुसार जांच के दायरे को बढ़ाने के लिए संसाधन की उपलब्धता से निश्चित तौर पर बेहतरी की उम्मीद की जा सकती है।

निपाह वायरस के संक्रमण को भयावह होने से रोकने में देश को जिस तरह कामयाबी मिली थीए वर्तमान में उसी प्रतिबद्धता और जनसहयोग की जरूरत है। भय और भ्रम खड़ा करने से हालात और बिगड़ते हैं। कोरोना से पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था डावांडोल है। जाहिर हैए भारत भी इससे अछूता नहीं रह सकता। पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को लगता है कि आर्थिक सुनामी से सब कुछ अस्त-व्यस्त हो जाने वाला है। केन्द्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। ऐसे निराशाजनक बयानों से तो देश का भी मनोबल चुकता है। ऐसे समय में इससे बचा जाना चाहिए। पहले जो आपदा आन पड़ी हैए उससे देश उबर जाये। बाद में सरकार पर आर्थिक नीतियों को लेकर हमले के लिए पर्याप्त समय रहेगा। बहरहाल, देश में राजनीति का हाल ही कुछ ऐसा है। आपात स्थितियों में भी संभावना तलाशी जाती है। इससे इतर विचारणीय यही है कि सब मिलकर इस चुनौती से निपटने में अपनी भूमिका निभायें। आखिरकार कोरोना को मिलकर ही हरा सकेंगे।

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