कुम्भ में संतों के साथ सत्संग कर जीवन सफल बनाएं

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कुम्भ
कुम्भ

कुम्भ का जहां एक ओर आध्यात्मिक-धार्मिक महत्व है, वही दूसरी ओर इसका लौकिक तार्किक महत्व भी कम नहीं है। इसीलिये सूर्य, चंद्र एवं बृहस्पति का विभिन्न राशियों में संक्रमण का यह काल अत्यंत मांगलिक एवं पुण्यकारी माना गया है। भारतीय संस्कृति की गंगा का जन्म जिस हमालय से हुआ है वह है अध्यात्म। विश्व में यदि आज भी भारत की कोई मौलिक पहचान है तो वह इसकी आध्यात्मिक समृद्धि से ही है। भ्रष्टाचार, अनाचार के दलदल में डूबते भारत देश तथा भारतीय संस्कृति को यदि कोई सुरक्षित रखे हुए है तो वह इसके मूल मे विद्यमान सुदृढ़ आध्यात्मिकता ही है। यह आस्थावान लोगों का देश है। इस विशाल देश में बहुरंगी संस्कृति जीवन शैली, बोली, भाषा आदि का अपूर्व संगम है किन्तु ऋषियों साधु-सन्तों एवं विद्वानों द्वारा अर्जित ज्ञान की सुदृढ़ रज्जु एक बहुरंगी माला की तरह सभी को एक सूत्र में पिरोये हुए है। यहां के निवासियों का अहिंसा एवं शान्तिवादी तथा संपूर्ण मानवता के कल्याण की कामना के ओतप्रोत समग्रता पूर्ण चिन्तन भारतीय संस्कृति का मूल लक्षण है।

कुम्भ
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यही कारण है कि कुम्भादि पर्वों पर तीर्थादि में एकत्र होने वाले विशाल जनमानस किसी भी भारतीय को आश्चर्य चकित नहीं करता यद्यपि महाकुम्भ विश्व का सबसे बड़ा मानव मेला है। तीर्थराज प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन तथा नासिक में पड़ने वाले ये कुम्भ पर्व, निःसंदेह संपूर्ण भारतवासियों को आपस में जोड़ते हैं तथा सर्वे भवन्तु सुखिनः एवं वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को साक्षात् मूर्तिमान करते हैं। तीर्थराज प्रयाग में महाकुम्भ एवं अर्द्ध कुम्भों में स्नान जप, दान आदि का महत्व भी पुराणों में वर्णित है। कुम्भ का जहां एक ओर आध्यात्मिक-धार्मिक महत्व है, वहीं दूसरी ओर इसका लौकिक तार्किक महत्व भी कम नहीं है। इसीलिये सूर्य, चंद्र एवं बृहस्पति का विभिन्न राशियों में संक्रमण का यह कला अत्यंत मांगलिक एवं पुण्यकारी तो माना ही गया है साथ ही ज्योतिषीय गणना के अनुसार ऐसी मान्यता है कि कुम्भ योग की ग्रह-नक्षत्र स्थिति में सूर्य की किरणें जल को अधिक औषधियुक्त बनाती हैं।

कुम्भ पर्व से सम्बन्धित देव-दानव युद्ध समुद्रमंथन का घटित होना अमृत की प्राप्ति जिसे दानवों से बचाने के लिए गरुड़ का अमृत कलश लेकर भागना, अमृत का चार तीर्थ स्थलों पर छलक जाना तथा उन्हीं तीर्थ स्थलों पर वभिन्न ग्रह-दशाओं के सुंदर सुयोग से उत्न्न शुभ मुहूर्तों पर कुम्भ पर्व का आयोजित होना आदि कथाओँ का वर्णन विभिन्न पौराणिक शास्त्रों में मिलता है। अस्तुतः कुम्भ पर्व बाह्मा जगत में ही नहीं अपितु अन्तर्जगत में भी अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। योगी-जन के माध्यम से इड़ा, पिंगला तता सुषुम्ना नाड़ियों की त्रिवेणी में स्नान कर ब्रह्म रन्ध्र में परमानंद की प्राप्ति रूपी अमृत का पान करेत है तो यही मानो उनका कु्म्भ स्नान है।

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