किसानों को मनाने में सफल रहे योगी

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समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, बहुजन समाज पार्टी की मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती, आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सहित केन्द्र और उत्तर प्रदेश में दशकों तक राज करने वाली कांग्रेस की सत्ता में रहते किसानों के प्रति जो भी सोच रही हो, लेकिन आज की तारीख में किसानों के वोट बैंक की लालच में उलझकर उक्त दलों के आला नेतृत्व ने पूरी तरह से पलटी मार ली है। यह लोग मोदी सरकार को नये कृषि कानून के बहाने ‘सियासी पटखनी’ देने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाह रहे हैं। जहां यह पार्टियां सत्ता में हैं वहां सरकारी मशीनरी के सहारे किसान आंदोलन को भड़का कर यह दल अपनी सियासी रोटियां सेंकने में लगे हैं। वहीं जिस राज्य में मतदाताओं ने इन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया है, वहां इन पार्टियों के दिग्गज नेता अपने भड़काऊ बयानों से किसानों को बरगला कर उन्हें मोदी सरकार के खिलाफ आक्रोशित करने में लगे हैं।

विपक्ष के इसी दोहरे चरित्र के चलते केन्द्र की मोदी और राज्यों की बीजेपी सरकारों को अपने यहां कानून एवं व्यवस्था संभालना मुश्किल होता जा रहा है। सबसे ज्यादा हंगामा पंजाब के कुछ हजार किसानों और थोड़ा-बहुत हरियाणा के किसानों द्वारा खड़ा किया जा रहा है। उक्त दो राज्यों के अलावा अन्य राज्यों के किसानों की नये कषि कानून को लेकर कोई नाराजगी नहीं जताना यही बताता है कि यह किसान मोदी सरकार के नये कषि कानून से या तो संतुष्ट हैं या फिर वह कुछ समय तक चुप रहकर इसका फायदा-नुकसान समझना चाह रहे होंगे। इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि जिन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी या फिर उसके गठबंधन वाली सरकारें हैं, वहां की राज्य सरकारों ने नये कृषि कानून को लेकर आशंकित किसानों का भय दूर करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेताओं और उनके केन्द्र तथा राज्यों के मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों द्वारा दिल्ली से लेकर राज्यों में किसानों के साथ चौपाल लगाकर, सेमिनार के माध्यम से, डिबेट के द्वारा, अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन प्रकाशित करने के साथ तमाम तरीकों से नये कृषि कानून के फायदे किसानों को गिनाए गए।

सबसे अधिक मेहनत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को करनी पड़ी। क्योंकि एक तो यूपी पंजाब और दिल्ली से लगा हुआ राज्य है। दूसरे उत्तर प्रदेश के किसानों के बीच अपनी मजबूत पकड़ रखने वाला संगठन, भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) भी पंजाब के आंदोलनकारी किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहा है। भाकियू नेता नरेश और राकेश टिकैत नया कृषि कानून वापस कराने के लिए लगातार मोदी सरकार को चुनौती दे रहे हैं तो वहीं यूपी में टिकैत बंधु नये कृषि कानून को लेकर किसानों को उकसाने और जगह-जगह प्रदर्शनों और हाईवे जाम कर योगी सरकार के सामने काननू व्यवस्था बनाए रखने की चुनौती पेश कर रहे हैं, लेकिन तारीफ करनी होगी योगी सरकार की कि भाकियू ने यूपी के किसानों को नये कृषि कानून के खिलाफ आंदोलित करने का कोई मौका नहीं छोड़ा तो योगी सरकार ने भी नये कृषि कानून की बारीकियों और उससे किसानों को होने वाले फायदों की खूबियां गिनाने में अपनी पूरी ‘फौज’ उतार दी, जिसने नये कृषि कानून क फायदे तो गिनाए ही इसके साथ ही किसानों को उनके (किसानों के) नाम पर चले रहे किसान आंदोलन के पीछे की सियासत से भी रूबरू कराया गया।

इसे भी पढ़ें: यूपी विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी से सीधी लड़ाई लड़ने से बचना चाहती है भाजपा उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की मेहनत का ही नतीजा था कि भारतीय किसान यूनियन जिस आंदोलन को पूरे प्रदेश में फैला देना चाहती थी, वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तीन-चार जिलों के कुछ किसानों के बीच सिमट कर रह गया। बसपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी आदि तमाम गैर विरोधी भाजपा दलों और नेताओं के तमाम प्रयासों के बाद भी नये कृषि कानून को लेकर अगर यूपी के किसानों का आक्रोश थमा रहा तो इसका काफी श्रेय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ‘टाइमिंग’ को जाता है, जिन्होंने आंदोलन शुरू होने के पहले दिन से ही किसानों को नए कृषि कानून की खूबियां बताना शुरू कर दी थीं और आज भी वह किसानों को समझाने में लगे हुए हैं।

नये कृषि कानून को लेकर दुष्प्रचार फैलाने और किसानों को भड़काने में वामपंथी-कांग्रेसी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी समेत तमाम दलों में कोई पीछे नहीं है। खासकर राहुल गांधी जैसे नेता तो सभी मर्यादाएं पार कर रहे हैं। इसी के चलते राहुल गांधी द्वारा यह कहा जा रहा है कि नए कृषि कानूनों से असली फायदा तो अंबानी और अदानी को होगा। अंबानी-अदानी के खिलाफ राहुल ने झूठ की दीवार खड़ी की तो उनकी पार्टी के अन्य नेताओं ने इस दीवार को और ऊंचा करने में अपनी ‘मेहनत’ झोंक दी। राहुल और कांग्रेस का सुनियोजित दुष्प्रचार यह जानते हुए भी आगे बढ़ता गया कि अंबानी-अदानी की कंपनियां किसानों से सीधे अनाज खरीदती ही नहीं हैं। यह कहां तक उचित है कि देश के प्रतिष्ठित उद्योगपतियों का कल्पनाओं के आधार पर विरोध किया जाए। उनके उत्पादों के बहिष्कार के लिए देश के किसानों को उकसाना आंदोलनकारी संगठनों की अपरिपक्वता को ही दर्शाता है।

हमें यह समझना होगा कि देश को उद्योगपति एवं किसान दोनों की जरूरत है। दोनों ही समाज का महत्वपूर्ण अंग हैं। बगैर उद्योगों के न तो कृषि उत्पादों का प्रसंस्करण हो सकता है और न ही अच्छा निर्यात। दोनों को एक-दूसरे के काम को सम्मान से देखना होगा। वर्ना सियासत में फंसकर किसान अपना ही बुरा करेंगे। इसी तरह यह भी एक तरह का दुष्प्रचार ही है कि नए कृषि कानून लागू हो जाने के बाद सरकारी मण्डी बंद हो जाएंगी। न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था खत्म हो जाएगी, किसानों की जमीनें भी छिन जाएंगी।

चूंकि इस दुष्प्रचार में मोदी विरोधी नेताओं के अलावा वे भी शामिल हैं, जो खुद को किसान नेता बताते हैं, इसलिए उनके इरादों पर संदेह होता है। क्या इससे बड़ी विडंबना और कोई हो सकती है कि किसान नेता ही किसानों को गुमराह करें? यह सब तब हो रहा है जबकि कृषि में सुधार के लिए विगत तीन वर्षों से केंद्र सरकार द्वारा फसलों के समर्थन मूल्य में निरंतर वृद्धि की जा रही है। फसलों को प्राकृतिक आपदा सहित अन्य नुकसानों से बचाने के लिए उसके फसल बीमा कवच को प्रभावी बनाने हेतु निरंतर बदलाव किए जा रहे हैं। लेकिन कुछ किसान संगठन हैं कि वे न केवल अपने अड़ियल रुख पर कायम हैं, बल्कि वह अपनी आंदोलन सूची में कई ऐसी मांग भी जोड़ते जा रहे हैं जिनका कृषि सुधार कानून से दूर-दूर का वास्ता नहीं है।

इसे भी पढ़ें: प्रश्न यह है कि आप लव के लिए जिहाद कर रहे हैं या जिहाद के लिए लव कर रहे हैं ? खैर, बात यूपी के किसानों की कि जाए तो यहां का किसान नये कृषि कानून को लेकर शांत था, लेकिन किसानों के नाम पर कई सियासतदार माहौल खराब करने की साजिश रचने में लगे हुए थे, यह और बात है कि योगी सरकार के खौफ के चलते गैर भाजपाई नेताओं के मंसूबे परवान नही चढ़ पाए। यूपी सरकार की सख्ती के कारण यहां कोई बहरूपिया किसान का भेष बनाकर प्रदेश का माहौल खराब करने, हिंसा-आगजनी फैलाने की हिमाकत नहीं कर पाया। क्योंकि सबको नागरिकता संशोधन एक्ट का वह दौर याद था, जब योगी सरकार ने उक्त एक्ट के विरोध के नाम पर प्रदेश को हिंसा की आग में झोंक देने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाते हुए उनकी संपत्ति तक की कुर्की का आदेश दे दिया था, अभी भी कई आरोपी कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं। यही नहीं अब तो यूपी में नया कानून बन गया है। अब कोई आंदोलन के नाम पर सरकारी या निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाएगा तो नुकसान की भरपाई ऐसे लोगों से करने के साथ उन्हें जेल तक भेजने का प्रावधान कर दिया गया है।

अजय कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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