कानूनी कवच जरूरी

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कोविड-19 की जंग में डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मचारियों पर बढ़ते हमलों से चिंतित सरकार ने अब कृत्य को गैरजमानतीय अपराध करार दिया है। इसके लिए बुधवार को अध्यादेश लाये जाने से प्रथम पंक्ति के योद्धाओं को निश्चित तौर पर एक संबल मिलेगा और उनके काम करने के जज्बे को ताकत भी मिलेगी। इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन ने इधर कुछ महीनों से डॉटरों और पैरामेडिकल स्टाफ पर जिस तरह लोग हमलावर हो रहे थे, उस पर चिंता जताते हुए विरोध जताया था। यह अच्छा हुआ कि सरकार ने मौके से यह महत्वपूर्ण कदम उठाया है। आखिर असुरक्षा के वातावरण में स्वास्थ्य के मोर्चे पर अपनी जान जोखिम के डालकर राउण्ड दि लाक यानि चौबीसों घंटे कोविड-19 पीडि़तों की सेवा में जुटा रहने वाला ये तबका आखिर कब तक काम कर पाता? निश्चित तौर पर इससे कोरोना के खिलाफ चल रही जंग को बहुत नुकसान पहुंचता। इस लिहाज से यह निर्णय अत्यन्त आवश्यक था। इसके लिए सरकार की सराहना की जानी चाहिए। इंदौर से लेकर यूपी तक मेडिकल स्टाफ पर हमले का सिलसिला चिंतित करने वाला था। दुर्भाग्यपूर्ण था। दुनिया में कहीं और शायद ही ऐसा मंजर पेश आया हो, जहां लोग इलाज करने वाले तबके पर ही हमलावर हो जायें, उनकी जान लेते दिखें।

पर भारत में यह सिलसिला बदस्तूर दिखाई दिया। हालांकि यह पहली बार नहीं है कि कोविड-19 की जंग के वक्त ही इस तरह की घटनाएं हुई हैं, पहले भी डॉटरों-नर्सों पर लोग हमलावर होते रहे हैं। बस फर्क इतना है कि इस तरह की घटनाएं इधर बढ़ती चली गयीं और इससे मेडिकल स्टाफ का मनोबल टूटने लगा था। कोरोना जांच के लिए इस तबके को बस्तियों से जाने से डर लगने लगा था। अतिरिक्त पुलिस बल की मांग उठने लगी थी। पुलिस बल की भी तो एक सीमा है। एक तो वैसे ही जरूरत के हिसाब से देश में पुलिस बल नहीं है, तिस पर यह बढ़ती मांग किस तरह पूरी हो पाती। इसलिए कानूनी रास्ता ही माकूल विकल्प हो सकता था। कुछ तो लोगों में नये कानूनी-शिकंजे को लेकर भय होगा। इस नये प्रावधान में पांच लाख रूपये तक जुर्माना और सात साल की सजा हो सकती है। उमीद है इस प्रावधान के बाद तस्वीर बदलेगी। ऐसा इसलिए कि यूपी की योगी सरकार ने भी कुछ महीने पहले एक अध्यादेश लाकर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों की खबर ली थी।

उस अध्यादेश का असर साफ दिखा, लोग हिंसा छोडकर अहिंसक ढंग से आंदोलन पर उतर आये। सख्त प्रावधानों का असर तो होता है। इसलिए डॉटरों-नर्सों को मिले इस वैधानिक कवच से बचाव की उम्मीद बढ़ी है। साथ ही यह उमीद भी बढ़ी है कि कोरोना के खिलाफ चल रही जंग में यह तबका निर्भय होकर अपना शत-प्रतिशत देता रहेगा। इसमें दो राय नहीं कि महामारी से फ्रंट पर अपनी जान भी जोखिम में डालने वाले डॉटर-नर्स ही कोविड-19 पीडि़तों का बचाव करेंगे। इसलिए इस तबके की हिफाजत भी जरूरी है। सोचिए, इस वक्त स्थिति यह है कि मेडिकल स्टाफ कोरोना मरीजों का इलाज करता है उसे अपने परिवार से भी एहतियातन दूर रहने की पीड़ा सहनी पड़ती है। खुदको क्वारंटीन करके वो अपने परिवार की हिफाजत करता है। एक स्थिति यह भी है कि पीडि़तों के इलाज में तमाम उपायों के बावजूद संक्रमण के साथ ही जिंदगी तक गंवानी पड़ जाती है ऐसे भी मामले सामने आये हैं तो उनके इस निस्वार्थ भाव को भी समझने की जरूरत है। कम से कम बदसलूकी तो नहीं की जानी चाहिए।

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