ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने घोषणा की है कि वे इस लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी के कुल उम्मीदवारों में 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं को देंगे। महिलाओं को 33 प्रतिशत सीटें विधानसभाओं और लोकसभा में देने का विधेयक पिछले 25 साल से अधर में लटका हुआ है लेकिन किसी पार्टी में हिम्मत नहीं है कि वह एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित कर दें।
मैंने तो कुछ साल पहले देश के राजनीतिक दलों से आग्रह किया था वे अपनी पार्टी के 33 प्रतिशत पद भी महिला नेताओं को दे दें। यदि महिलाएं नेतृत्व वर्ग में आगे होंगी तो देश की राजनीति में गुणात्मक सुधार होगा और हमारे पड़ौसी देशों को भी प्रेरणा मिलेगी। अभी तो हमारी विधान सभाओं और संसद में 8-10 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं होती ही नहीं हैं। भारत से ज्यादा अच्छा अनुपात तो इस मामले में अफगानिस्तान का है।
अब नवीन पटनायक ओडिशा की 21 सीटों में से एक तिहाई सीटों पर महिला उम्मीदवार खड़े करेंगे। जाहिर है कि अन्य दल इन सीटों पर पुरुष उम्मीदवार भी खड़े करेंगे। ओडिशा के इस चुनाव पर पूरे देश की नजरें गड़ी रहेंगी। देश के 90 करोड़ मतदाताओं में 49 प्रतिशत महिलाएं हैं और अब उनमें से 65 प्रतिशत महिलाएं मतदान करती हैं। कई राज्यों में पुरुषों से ज्यादा महिलाओं ने मतदान किया है। इधर कई राज्यों ने अपनी पंचायतो में महिलाओं को 50 प्रतिशत तक प्रतिनिधित्व दे दिया है।
यदि भारत की विधानसभाओं और संसद में महिलाओं का अनुपात बढ़ेगा तो जाहिर है कि मंत्रिमंडलों में भी उनकी संख्या बढ़ेगी। तब इंदिरा गांधी की तरह कई महिलाएं प्रधानमंत्री बनने की होड़ में रहेंगी और सुचेता कृपालानी, नंदिनी सत्पथी, वसुंधरा राजे, सुषमा स्वराज, उमा भारती, महबूबा मुफ्ती, ममता बेनर्जी, मायावती और जयललिता की तरह दर्जनों महिलाएं भारत के कई प्रांतों में मुख्यमंत्री का पद सुशोभित करेंगी। देश की महिला मतदाताओं को अपनी तरफ खींचने के लिए भाजपा ने उज्जवला-जैसी योजनाएं चलाईं और कांग्रेस भी उन्हें लंबे-चौड़े आश्वासन दे रही है लेकिन इन पार्टियों को नवीन पटनायक से सबक लेकर महिलाओं को सत्ता में अधिकार बांटना चाहिए और इस आशय का कानून संसद में बने या न बने, राष्ट्रीय जीवन में तो लागू हो ही जाना चाहिए।
डा. वेद प्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है