सत्ताधारी बीजेपी ने खुद को गौ-भक्त के रुप में पेश किया है। लेकिन हकीकत यह है कि पशुधन को लेकर सरकार अब तक ठोस नीति नहीं बना सकी है। लेकिन अगर यह पूछा जाय तो ऐसा क्यों हुआ है, तो सत्ता पक्ष पूछने वाले को राष्ट-विरोधी करार देंगे। जबकि सरकार से यह अवश्य पूछा जाना चाहिए कि जो गाय करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी का जरिया बन सकती है, उसे नफरत की राजनीति का माध्यम क्यों बना दिया गया है?
गाय भारतीय समजा और भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। गाय को लेकर पिछले पांच साल में खूब सियासत हुई है। सत्ताधारी बीजोपी ने खुद को गौ-भक्त के रुप में पेश किया है। लेकिन हकीकत यह है कि पशुधन को लेकर सरकार अब तक ठोस नीति नहीं बना सकी है। लेकिन अगर यह पूछा जाय तो ऐसा क्यों हुआ है, तो सत्ता पक्ष पूछने वाले को राष्ट-विरोधी करार देंगे। जबकि सरकार से यह अवश्य पूछा जाना चाहिए कि जो गाय करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी का जरिया बन सकती है, उसे नफरत की राजनीति का माध्यम क्यों बना दिया गया है? इस तथ्य पर गौर कीजिए-पिछले पांच साल में सरकार ने सिर्फ चार गोकुल ग्राम बनाए। फिर खुद सरकारी आंकड़ों के अनुसार भाजपा के सत्ता में आने के बाद से भारत बीफ निर्यात के क्षेत्र में लगातार आगे बढ़ता गया है।
राष्ट्रीय गोकुल मिशन जुलाई 2014 में कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने लॉन्च किया था। यह योजना देसी गायों के संरक्षण, देसी गायों की नस्लों के विकास, दुग्ध उत्पादन बढ़ाने, पशु उत्पाद की बिक्री आदि समेत कई लक्ष्यों के लिए शुरु की गई थी। 26 जनवरी 2018 को सूचना का अधिकार कानून के तहत कृषि मंत्रालय अधीन पशुपालन विभाग ने जो सूचना उपलब्ध कराई। उसके मुताबिक मंत्रालय की तरफ से इस मिशन के लिए पिछले पांच साल में तकरीबन 835 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके है। सवाल है कि तकरीबन 800 करोड़ रुपये से काम क्या हुआ?
क्या देश में कोई ठोस गो-नीति बन सकी, जिससे प्रधानमंत्री मोदी का सपना पूरा हो सके? इसका भी जवाब इसी दस्तावेज में है। उसेक मुताबिक 26 नवंबर 2018 तक पूरे देश में सिर्फ चार गोकुल ग्राम बनाए जा सके है। ये चार गोकुल ग्राम वाराणसी, मथुरा, पटियाला और थतवाड़े (पुणे) में बनाए गए हैं। इस मिशन को जब लॉन्च किया गया था, तब 13 राज्यों में पीपीपी मॉडल के तरह 20 गोकुल ग्राम बनाने की बात की गई थी। इसके लिए 197.67 करोड़ रुपये का बजट भी रखा गया था। इसमें से 68 करोड़ रुपये जारी भी कर दिए गए थे चार स्थानों पर ही गोकुल ग्राम का निर्माण हो पाया।
क्या यह इस सरकार की गो-भक्ति की प्रमाण है? यह इससे यह जाहिर होता है कि मौजूदा सत्ताधारियों के लिए गाय सिर्फ एक वोट हथियाने का माध्यम है? उत्तर प्रदेश का ही उदाहरण लीजिए, योगी सरकार ने हर तरह के जत्न करके देख लिए लेकिन अब आश्रम स्थलों में उनकी हालत खस्ता है। सवाल ये भी उठते हैं कि आखिर कब काम जनमानस खासकर हिन्दू ये सोचेंगे कि अगर गाय उनकी माता है तो क्या उसे सड़कों पर छोड़ जा सकता है…क्यों नहीं उनके पालने की व्यवस्था जनता भी करती…
विनीत पांडेय
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके नीजि विचार हैं