एनजीटी का बढ़ता खौफ

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राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण यानी एनजीटी की सख्ती ने पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वालों की नींद उड़ा दी है। नवंबर महीने के शुरुआती दिनों में ही प्राधिकरण ने कई ऐसे आदेश दिये हैं, जिनसे उद्योगपतियों और अधिकारियों को सांसत में डाल दिया है। प्राधिकरण की सख्ती के चलते उत्तर प्रदेश सरकार भी कड़े कदम उठाने को विवश है। इसके बावजूद गंगा मैली एनजीटी ने अभी कानपुर की अूटेनरियों पर करोड़ों का जुर्माना ठोका है। केन्द्र की मोदी सरकार ने गंगा सफाई का वादा किया था। इसके लिए पहली बार अलग मंत्रालय भी बनाया गया। मगर गंगा का उद्धार न हो सका। गंगा का पानी बुरी तरह प्रदूषित ही रहा। प्राधिकरण ने इस मामले को बेहद गंभीरता से लेते हुए सरकार की लापरवाही पर गंभीर चिंता जतायी है। प्राधिकरण ने जहरीले क्रोमियमयुक्त सीवेज गिरने से रोकने में नाकाम रहने पर प्रदेष सरकार पर फटकार भी लगायी है। इसी तरह राजस्थान बांडी नदी को कपड़ा उद्योग द्वारा प्रदूषित किए जाने पर बीस करोड का जुर्माना लगाया था।

देश की राजधानी दिल्ली बढ़ते प्रदूषण से त्रस्त है। इस प्रदूषण बढाने के लिए जिम्मेदार जर्मन कार कंपनी फॉक्सवैगन पर पांच सौ करोड़ का जुर्माना लगाया था। कंपनी पर आरोप था कि उसने डीजल कारों में उतर्जन का स्तर छिपाने वाले उपकरण का इस्तेमाल कर पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया है।सभी जानते हैं कि कानपुर चमड़ा उद्योग का बड़ा केन्द्र है। यहा जाजमउ में सैकड़ों चमड़ा फैक्ट्री हैं, जिनमें हजारों लोग काम करते हैं। लेकिन इन टेनरियों से गंगा का जल भी प्रदूषित हो रहा है। जाजमउ में टेनरियां बंद करने का आदेश एनजीटी द्वारा गठित एडवाइजरी कमेटी की सर्वे रिपोर्ट के बाद दिया गया। सेवानिवृत्त जज ए के टंडन की अध्यक्षता वाली टीम ने अपने सर्वे के दौरान पाया कि ट्रीटमेंट प्लांट पूरी तरह ठप पड़ा है और टेनरियों का विषैला पानी सीधे गंगा में जा रहा था। प्राधिकरण के आदेश के चलते टेनरियां अब प्लांट शुरू होने के बाद ही चल सकेंगी। दरअसल गंगा को लेकर पहले भी एनजीटी ने कई बार चिंता जाहिर की है। जस्टिस स्वतंत्र कुमार ने चेतावनी दी थी कि अगर टेनरियों का गंदा पानी गंगा में गिरना बंद न हुआ तो टेनारियों को बंद कर दिया जायेगा। लेकिन यह खेल चलता रहा। अब टेनरियों के बंद होने से जहां हजारों लोग बेरोजगार होंगे, वहीं व्यापारियों का भारी नुकसान भी होगा।

एक चमड़ा कारोबारी के अनुसार, टेनरी बंद होने से रोजाना तीन सौ करोड़ का नुकसान होगा। ताजा आदेश सख्ती से लागू हुआ तो गंगा का पानी साफ होने का रास्ता खुलेगा। गंगा सफाई को लेकर जस्टिस गोयल की अध्यक्षता वाली कमेटी ने कहा था कि गंगा के पुनर्जीवन के लिए जमीनी स्तर पर किए गए काम अपर्याप्त हैं। गंगा की हालत में तभी सुधार हो सकता है, जब उसकी नियमित निगरानी की जाए। जस्टिस जवाद अहमद और आर एस राठौड की सदस्यता वाली पीठ ने कहा कि यह देश की सबसे बड़ी नदी है, जिससे सौ करोड़ से अधिक लोगों की श्रद्धा जुड़ी हुई है। लेकिन हम इसे स्वच्छ नही कर पा रहे हैं। एनजीटी ने गौमुख से उन्नाव तक उठाये गये कदमों को लेकर केन्द्र, उत्ताराखंड और उत्तर प्रदेश सरकार की रिपोर्ट दाखिल न करने पर खिचाई भी की थी। इसी तरह सोनभद्र और सिंगरौली क्षेत्र में बिजलीघरों की उत्सर्जित राख से आसपास के इलाकों में हवा इतनी प्रदूषित हो गयी थी कि सांस लेना दूभर था। जिसके चलते इलाके में सांस के मरीज, अस्थमा और टीबी का जाल फैलता जा रहा था। आसपास के लोग बीमारियों की चपेट में आ रहे थे और प्रशासन हाथ पर हाथ रखे बैठा था। इस पर प्राधिकरण ने जब डंडा चलाया तो अधिकारी नींद से जागे। सोनभद्र और सिंगरौली इलाके के एनटीपीसी के बिजलीघरों से उत्सर्जित राख के चलते बढ़ते प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए प्राधिकरण ने बेहद सख्त रुख अपनाया है।

इसको लेकर जस्टिस राजेश कुमार की अध्यक्षता वाली चार सदस्यीय कमेटी ने समयबद्ध प्लान लागू कर दिया है। इसके तहत प्रथम चरण में बिजलीघरों से उत्सर्जित राख, कोयले के सड़क परिवहन से ढुलाई पर प्रतिबंध, औड़ी और शक्तिनगर के बीच फोरलेन का निर्माण ढुलाई पर प्रतिबंध, औड़ी और शक्ति नगर के बीच फोरलेन का निर्माण, लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए डिबुलगंज के संयुक्त चिकि त्सालय को उच्चीकृत करना तथा फ्लोराइड व प्रदू्षण से प्रभावित क्षेत्रों में पीने के लिए शुद्ध पानी की आपूर्ति के समयबद्ध कार्यक्रम सुनिश्चित कार्यक्रम बनाने के कड़े निर्देश दिए गए हैं। इसी तरह इस इलाके में अवैध खनन को लेकर अगस्त में प्राधिकरण ने डंडा चलाया था और अवैध पट्टे निरस्त कर दिए थे। एनजीटी ने ऐसे कई आदेश दिए हैं, जिनकी देश और देश से बाहर चर्चा रही है। ऐसा ही एक आदेश जंतर-मंतर पर होने वाले धरना प्रदर्शन पर रोक संबंधी था। नई दिल्ली का जंतर-मंतर धरना प्रदर्शन के लिए पूरे देश में मशहूर रहा है। मगर पिछले साल एनजीटी ने जंतर-मंतर पर धरना देने पर पाबंदी लगा दी थी।

उदय यादव
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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