एक भक्त गुलाब सखी

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बरसाना धाम में प्रेम सरोवर मार्ग पर एक समाधि बनी हुई है। जिसे सब गुलाब सखी के चबूतरे नाम से जानते हैं। इस भक्त का नाम था गुलाब। ऐसा कहा जाता है कि यह राधा और कृष्ण जी का भक्त था। गुलाब एक गरीब मुसलमान था। राधा रानी सब पर कृपा करती हैं। ये बरसाने में श्रीकृष्ण जी के मंदिर में सरंगी बजाता था और जो धन मिलता था उससे अपने परिवार का पालन-पोषण करता था। इसकी एक बेटी थी जिसका नाम राधा था। जब सत्संग हुआ करता था तो वो लड़की श्रीकृष्ण और राधा की भक्ति में भाव-विभोर होकर राधा रानी के सामने नृत्य करती थी। जब यह कन्या बड़ी हुई तो लोगों ने यह कहना प्रारंभ कर दिया कि गुलाब अब तुम्हारी बेटी बड़ी हो गई है। अब इसके लिये कोई वर तलाशना प्रारंभ कर दो। गुलाब ने कहा कि राधा रानी की बेटी है जब वो कृपा करेंगी तो शादी हो जायेगी। मेरे पास इतना धन नहीं की मैं विवाह की व्यवस्था कर सकूं। लोगों ने कहा कि तुम लड़का तो देखो व्यवस्था हम कर देंगे। तो उस भक्त गुलाब ने एक लड़का देखा और अपनी बेटी राधा का विवाह कर दिया।

बेटी अपनी ससुराल चली गई। तीन दिन हो गये पर बेटी को गुलाब भुला नहीं पा रहा है। खाना-पीना सब छूट गया। ना सारंगी बजाई, ना समाज गायन सत्संग में गया। लेकिन एक दिन रात्रि में श्रीकृष्ण जी के मंदिर के द्वार पर बैठ गया। ठीक रात्रि के 12 बजे उसे एक आवाज सुनाई दी। तभी एक छोटी सी बालिका उसे दौड़ते हुई दिखाई दी और गुलाब सखी के पास आई और बोली की बाबा, बाबा। आज सारंगी नहीं बजायेगी। मैं नाचूंगी। जब उसने आंख खोलकर के देखा तो एक सुंदर बालिका उसके सामने खड़ी है। उसने पास रखी सारंगी उठाई और उसे बजाना प्रारंभ कर दिया। वो बालिका नृत्य करते हुए सीढ़ियों की ओर भागी। गुलाब ने सारंगी रख दी और राधा राधा कहते हुए उस लड़की की और दौड़ा। लेकिन बाद में वो वहां किसी को नहीं दिखा। श्रीकृष्ण में समा गया।

लोगों ने सोचा कि इसका खाना-पीना छूट गया था कहीं ऐसा तो नहीं कि पागल होकर मर गया हो। लोग भूल गये। महीना बीता, साल बीत गया। लेकिन एक दिन रात्रि में गोस्वामी जी राधा रानी को शयन करवा कर मंदिर की परिक्रमा में आ रहे थे। तो झाड़ी के पीछे से निकला। पुजारी ने पूछा कि कौन है। वो बोला तिहारी गुलाब। पुजारी ने कहा कि गुलाब तो मर गया है। उसने कहा कि मैं मरा नहीं हूं श्रीकृष्ण जी के परिकर में सम्मिलित हो गया हूं। गोस्वामी ने पूछा कि कैसे। तो उसी समय गुलाब ने गोस्वामी जी के हाथ में पान की बिरी रखी जो अभी अभी राधा रानी को शयन के समय भोग लगाकर के आये थे। इतना कहकर वो झाड़ियों के अंदर चला गया और फिर कभी नहीं दिखा। आज भी बरसाने में गुलाब सखी जी की समाधि है। जिसे गुलाब सखी का चबुतरा कहते हैं।

– सुदेश वर्मा

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