एक नया मौसम है प्रदूषण

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यह ठीक है कि प्रदूषण एक समस्या है, सिरदर्दी है, बेबसी है, चिड़चिड़ाहट है, हड़बड़ाहट है, जनता के लिए भी और सरकारों के लिए भी। प्रदूषण एक मुद्दा है- अखबारों के लिए टीवी चैनलों के लिए बुद्धिजीवियों के लिए, अकादमिक कवायद के लिए, प्रशान की उनींदी आखों के लिए और विपक्षी पार्टियों तथा उनके कार्यकर्ताओं के लिए भी। प्रदूषण है तो एक सात्विक आक्रोश है, व्यवस्था के खिलाफ। यह है तो जीवन के अधिकार का स्मरण है नागरिक कर्तव्यों का बोध है। यह सचाई है कि प्रदूषण अब सर्दी, गर्मी और बारिश की तरह का एक नया सीजन है। मौसम विज्ञानियों को इसे ऋतुचक्र में शामिल करने पर विचार करना चाहिए। चाहे प्राचीन ग्रथों में क्षेपक की तरह ही सही। जैसे हर सीजन के पहनने-ओढ़ने, खाने-पीने और रहने-सहने के अपने तौर-तरीके हैं, रीति-रिवाज और कायदे-कानून बन चुके हैं। जैसे गर्मियों में सूती कपड़े और सर्दियों में गर्म कपड़े पहनने का रिवाज है, वैसे ही प्रदूषण के सीजन में मास्क पहनने का रिवाज है।

जैसे गर्मियों में लू से बचने के लिए तौलिया चाहिए, सर्दी में शीतलहर से मुकाबले के लिए मफलर चाहिए, वैसे ही प्रदूषण के सीजन में मास्क चाहिए। जैसे स्वेटर-मफलर निकलना सर्दियों के आने की सूचना होते है, वैसे ही मुंह पर मास्क का लगना भी प्रदूषण के आने की सूचना होती है और पहचान भी। माना कि प्रदूषण एक उद्योग है। कल तक वह उद्योगों का उत्सर्जन था। प्लास्टिक उद्योग का कचरा था, उसके जलने का धुआं था। कल तक यह कोयले के जलने का परिणाम था पर अब स्वयं में एक उद्योग है। इसमें मास्क का उत्पादन होता है, इस उद्योग में एयर प्यूरीफायर बनते हैं। यह अनंत संभावनाओं से भरा एक बढ़ता उद्योग है जिसमें आने वाले समय में ऑक्सिजन के पाउच बनेंगे, पुड़िया बनेंगी बोतलें बनेंगी, मुमकिन है ऑक्सीजन कवच भी बने, हो सकता है कल सबके पास अपनी ऑक्सीजन बॉल हों जिनके खोल में सब सुरक्षित रहें। पर अभी तो प्रदूषण की सबसे बड़ी देन यह है कि उसने आम आदमी को अकिंचन इंसान के लिए दूसरा भगवान है।

भगवान ने तो इंसान को जल, वायु, मिट्टी वगैरह पंच तत्वों से बनाया। पर प्रदूषण ने इंसान को पंचतत्वों से विहीन कर सिर्फ जहर पीकर जीना सिखाया। जहर पीकर जीना सिर्फ भगवान के ही बस की बात है। भगवान के अलावा एक भक्त में महापुरुषों को जहर पीने का सौभाग्य मिलता था। इधर कुछ समय से जहर पीना सिर्फ इस देश के किसान का ही विशेषाधिकार हो गाय था पर अब प्रदूषण के चलते किसान के इस विशेषाधिकार का कोई खास महत्व नहीं रहा। प्रदूषण ने हम सब अकिंचन इंसानों को जहर पीने का मौका दिया और महानता बख्शी है। प्रदूषण ने बेशक जहर पीने का किसान को विशेषाधिकार खत्म कर दिया हो, पर उसने किसान को भी नेहरूजी के बराबर दर्जा देकर उसे महानता बख्शी है। प्रदूषण के सामने कहने को सब बराबर है, बस मार गरीब पर ज्यादा पड़ती है।

एयर प्यूरीफायर और इस समानता से वैसे ही उपर रहते हैं जैसे वे कानून और संविधान वगैरह से उपर रहते हैं। जिस तरह आजकल देश की हर समस्या के लिए नेहरूजी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, वैसे ही इधर प्रदूषण के लिए सिर्फ किसान को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। प्रदूषण का दोष कोई ऑटोमोबाइल को न दे, वह पहले ही मंदी की चपेट में है और सरकरा के हाथ-पांव फूले हुए हैं। गाड़ियों की बिक्री कुछ बढ़े तो चैन आए। प्रदूषण का दोष कोई प्लास्टिक उद्योग को न दे। वह गोमाता की खुराक है। इसका दोष कोई कोयला उद्योग को न दे। कोयलों की दलाली में हाथ काले होने की तमाम संभावनाओं के बावजूद सभी सरकारें खदानों की नीलामी को लालायित रहती है। प्रदूषण का दोष कोई औद्योगीकरण को न दे, वह अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। इसलिए प्रदूषण का दोष किसान पर डाल दो और उसे नेहरूजी के सामान दर्जा देकर महानता बख्श दो।

सहीराम
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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