इतिहास हमारे कामों का मूल्यांकन करेगा

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पिछले साल 9 मार्च को जब महाराष्ट्र की नई सरकार कामकाज में व्यवस्थित हो ही रही थी कि तभी कोविड की खतरनाक दस्तक सुनाई देनी लगी। महामारी का वायरस सिर्फ अपने देश ही नहीं पूरे विश्व के लिए नया था। तब हमारे आसपास कई तरह के तर्क दिए जा रहे थे कि भारत के लोगों के पास बेहतर इम्युनिटी है,यहां ऐसा गर्म वातावरण है कि यह मारक वायरस अमेरिका, यूरोपीय देशों की तरह नहीं पसरेगा। भारत इसके प्रकोप से बचकर रहेगा। इन्हीं दिलासों के बीच सुस्ती होती जा रही थी। लेकिन महाराष्ट्र की सरकार सकारात्मक उम्मीदों के साथ किसी तरह की सुस्ती में जाने के बजाय सबसे बुरे दौर से लड़ने के लिए जुट गयी।

याद होगा कि सबसे पहले मुख्यमंत्री उद्वव ठाकरे जो निर्णय लिया था वह था 11 डॉक्टरों के मेडिकल टास्क फोर्स का गठन करना। मेडिकल एक्सपर्ट की टीम वाली टास्क फोर्स को काेविड से लड़ने के लिए नीति और उसे संचालन करने का काम दिया। उन्होंने ही सबसे पहले-टेस्टिंग, ट्रैकिंग और ट्रीटिंग का फार्मुला दिया जो तभी से लेकर आजतक कोविड के खिलफ जंग में सबसे प्रमुख हथियार है।

तब जहां राज्य में विपक्ष के रूप में बीजेपी राजनीति करने में जुटी थी तो केंद्र सरकार विपक्षी राज्यों को अस्थिर करने में जुटी थी,लेकिन महाराष्ट्र ने कोविड से जंग में पहली पहल ली और कई रास्ते दिखाए। तमाम अवरोधों को दूर करने के लिए कदम उठाए। देश में महामारी के पुराने मिसाल बताते थे कि जहां आबादी का घनत्व सबसे अधिक रहा वहां महामारी का प्रकोप सबसे अधिक रहा है। मुंबई में न सिर्फ सबसे व्यस्त अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है बल्कि सबसे बड़ा स्लम इलाका भी है। विश्व की सबसे घनी आबादी वाला शहर भी है। खतरे को भांपते हुए उसी अनुरूप कदम उठाए गए।

और जब महाराष्ट्र के कोविड मैनेजमेंट की बात हुई तो यह महज प्रोपेगेंडा नहीं रहा। पुख्ता प्रमाणिक चीजें इस मैनेजमेंट की गवाह बनी। मुंबई हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कार्ट तक ने कई मौकों पर इसकी सराहना की। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने धारावी जैसे बड़े स्लम इलाकों को कोविड से बचाने के लिए की गयी कोशिशों को सराहा। इस दौरान सिर्फ महामारी नहीं बल्कि मानवीव पहलुओं को भी ध्यान में रखा गया और लॉक डाउन जैसे बंदिशों के बीच हर गरीब तक सरकार ने मदद पहुंचाने की सफल कोशिश की।

इन सबके बीच सरकार ने डाटा में पारदर्शिता और हालात को बिना छिपाए सामने रखा। चाहे कोविड पोजिटिव केस की तादाद हो या मरने वालों की संख्या राज्य ने एक-एक बात सामने रखी बिना कोई परदा दिये। शुरू में जरूर बढ़ी संख्या को लेकर आलोचना हुई लेकिन बाद में सभी ने माना कि कोविड से जंग में आंकड़े को जितना छिपाने की कोशिश होगी,यह उतना ही पलटवार करेगा। उसकी मिसाल हमने कई दूसरे राज्यों में देखी। डाटा को छिपाने से हमें पूरे विश्व के सामने शर्मशार होना पड़ा और हमारे आंकड़ों को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है।

अब जब दूसरी लहर के कमजोर होने के संकेत मिल रहे हैं तो इसी दौरान तीसरे लहर के अनजाने आशंका के बीच हमें वक्त मिला है जब हम खुद को आगे किसी भी हालात से मुकाबले के लिए तैयार कर सकें। आगे हमें दोहरी लड़ाई लड़नी है। कोविड की दूसरी लहर में मिली सीख के आधार इस बार हर चीजों की जरूरत का पहले से इंतजाम उसी हिसाब से कर रखना है। ऑक्सीजन की आपूर्ति हो या आईसीयू बेड्स की तादाद। मेडिकल कर्मियों की तैनाती हो या अस्पतालों की संसाधनों की जरूरत। दवाओं की उपलब्धता की बात हो या बच्चों में संक्रमण पसरा तो उससे निबटने के उपाय। इन तमाम मोर्चों पर हमारा मंथन जारी है। हम इनकी तैयारियों के लिए तीसरी लहर के दस्तक देने तक इंतजार नहीं कर सकते हैं। वहीं दूसरी ओर हमें टीकाकरण की गति को भी बढ़ाते हुए उसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने का टास्क है।

इस बात को हमें ध्यान में रखना है कि सबसे अधिक तैयारी उन इलाकों के लोगों को महामारी से बचाने के लिए करनी होगी जहां सुविधाएं कम हैं और जहां के लोग सरकार की सुविधाओं और मदद पर अधिक आश्रित हैं। हम महाराष्ट्र में शुरू से सभी के लिए अधिक से अधिक टीकाकरण की मांग कर रहे थे। अगर उत्पादन बढ़ाने से लेकर टीके की आपूर्ति तक के मोर्चे पर शुरू से तत्परता दिखाया होता तो अब तक बड़ी आबादी को हम टीका लगा चुके होते। लेकिन जैसा शुरू में कहा,अब जो हुआ उससे सीख लकर आगे बढ़ने का वक्त है। अगले कुछ महीने में हमें आक्रामक रूप से सभी जरूरतमंदों तक टीका पहुंचाना होगा ताकि संक्रमण से लड़ाई में एक बेहद प्रभावी कवच तैयार हो जाए। हम यह भी उम्मीद करते हैं कि बच्चों के लिए टीका का रास्ता जल्द खुल जाएगा।

महाराष्ट्र के सीएम ने टीका की कमी के बीच भी इसकी गति बिल्कुल कम नहीं होने दी और उसी का परिणाम है कि पूरे देश में 3 करोड़ टीका देने वाला राज्य भी बना। केंद्र टीका की आपूर्ति में जिस तरह बिना तैयारी अति आत्मविश्वास में चली गयी थी उसका बड़ा नुकसान सबको उठाना पड़ा। अब आगे टीकाकरण के मोर्चे पर ऐसी सूरत न बने और जल्द से जल्द सभी लोगो को टीक लग जाए, इसके लिए अब पूरी पारदर्शिता बनायी रखनी है। हम पहले ही इसमे कुछ महीने का नुकसान कर चुके हैं। सभी ने देखा कि महाराष्ट्र ने टीकाकरण में भी कई इनोवेशन किया। विदेश में जाने वाले स्टूडेंट या दूसरे जरूरतमंद लोगों को प्राथमिकता से टीका दिलाया तो झोपड़ियों तक कैंप लगाने के लिए खास इंतजाम किये।

कोविड से हुई जंग ने हम सभी को एक बहुत बड़ी सीख दी है कि चीजों को विकेंद्रित कर रखनी है। ऊपर से नीचे तक आपूर्ति सिस्टम को मजबूत करते हुए सभी का इमपॉवर करना है। सभी को पॉवर देना है। मैन पॉवर बढ़ानी है। यह जंग कहीं एक कमांड कंट्रोल रखने से नहीं जीती जा सकती है। आज की तारीख में जब दूसरी लहर के कमजोर होने के संकेत मिल भी रहे हैं तब भी कोविड के खिलाफ जंग जीतने का एलान हम नहीं कर सकते हैं। हम इससे अभी भी कोसों दूर है और थोड़ी से लापरवाही की बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

तीसरी लहर की आशंका के बीच हम कोविड से तभी लोगों को बचा सकते हैं जब रजनीति को दरकिनार कर संयुक्त प्रयास से अभी से एक साथ जुट जाएं। बिना वक्त गवाएं। सच स्वीकार करें कि जब जीतेंगे तो हम सभी साथ जीतेंगे और हारेंगे तो सब हारेंगे। यह लोगों को बचाने की सामुहिक लड़ाई है जिसमें राजनीति का अवसर देखने से परहेज करना चाहिए। बीति ताहि बिसार दे के मंत्र से कम से कम तीसरी लहर से लोगों का बचाने के लिए अभी से जुट जाना है। हमें इस बात को भी जेहन में रखना होगा कि सदी की सबसे बड़ी आपदा के समय हमने कैसा बर्ताव किया वह इतिहास में दर्ज होगा और आने वाली पीढ़ियां नए सिरे से सभी का मूल्यांकन करेगी। सवाल भी पूछेगी।

प्रियंका चतुर्वेदी
(लेखिका शिवसेना की राज्यसभा सांसद हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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