अगर कहा जाए कि केजरीवाल ने शीला के मंत्र से तीसरी बार सत्ता हासिल की है तो गलत नहीं होगा। दिल्ली चुनावों में बीजेपी ने शाहीन बाग और नागरिकता संशोधन कानून को मुद्दा बनाने की कोशिश की, लेकिन नतीजों से पता चल रहा है कि इस चुनाव में स्थानीय मुद्दों पर ही मतदाताओं ने वोट डाला है। शीला 1998 से 2013 तक लगातार तीन बार दिल्ली की सीएम रही थीं। इस दौरान में उन्होंने स्थानीय मुद्दों को तवज्जो दिया और बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य तथा शिक्षा जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए तीन बार दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुई थीं। शीला को दिल्ली में मेट्रो, लाइओवर और सड़कों का जाल बिछाने का भी श्रेय दिया जाता है। इस दौरान उन्होंने राजधानी में आधुनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया। उनके कार्यकाल में दिल्ली में करीब 70 लाइओवरों का निर्माण हुआ।
उन्हीं के कार्यकाल में रिंग रोड को सिग्नल फ्री करने के लिए लाइओवर बनाए गए। काम बोलता है, का दिल्ली में शीला दीक्षित के कार्यकाल से बेहतर कोई मिसाल नहीं मिल सकती। केजरीवाल ने पिछले 5 साल में जिस तरह से दिल्ली में शासन किया है वह भी कमोबेश शीला वाली स्टाइल से ही मैच करती है। केजरीवाल ने बिजली, पानी, मोहल्ला क्लीनिक जैसे कामों के जरिए लोगों में अपनी पैठ बनाई। महिलाओं के लिए फ्री बस यात्राए हर महीने 20 हजार लीटर फ्री पानी और 200 यूनिट तक फ्री बिजली ने लोगों को केजरीवाल के साथ जोड़ दिया। मोहल्ला क्लीनिक में लोगों को मुफ्त इलाज की सुविधा जैसी योजनाओं ने आप सरकार को लोकप्रिय बनाया। इसके अलावा शिक्षा के मोर्चे पर केजरीवाल सरकार के कामों से दिल्ली की जनता में सकारात्मक संदेश गया। खुद केजरीवाल ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि उनकी सरकार ने स्कूलों को बेहतरीन बना दिया है।
तीसरी बार सीएम बनने के बाद केजरीवाल के सामने चुनौतियां भी कम नहीं होंगी। पुरानी योजनाओं को बरकरार रखना और नए वादों को लागू करना भी केजरीवाल के लिए चुनौती होंगी। केजरीवाल ने अगले 5 साल में यमुना साफ करने का वादा किया है, जनता अब इन वादों की कसौटी पर उन्हें जरूर परखेगी। यह सही है कि जिस दिल्ली ने ठीक कुछ महीने पहले आम चुनाव में नरेंद्र मोदी की सरकार पर भरोसा जताते हुए पचास फीसदी से ज्यादा वोटो का समर्थन देकर जिताया था उसी जनता ने राज्य के चुनाव में केजरीवाल पर आगे के लिए भी यकीन किया यह बीजेपी के लोकल नेतृत्व को सोचना चाहिए।
सिर्फ किसी को कुछ भी विवादित कह देने से उसका उल्टा असर पड़ता है यह बीजेपी के प्रचारकों ने नहीं सोचा जबकि खुद इसका शिकार मोदी रहे हैं। राष्ट्रवाद की प्रासंगिकता से इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन लोगों का काम अकेले इससे नहीं चल सकता यह यथार्थ है। केजरीवाल के मॉडल कितना जमीन पर उतरा इसके बजाय बीजेपी अपने दिल्ली के मॉडल को लेकर जनता के बीच जाती तो उसका वोटरों पर पॉजिटिव असर पड़ता। पर भारी भरकम फौज के मैदान में उतरने के बाद भी नतीजा अनुकूल नहीं आया। एक मनीष सिसोदिया के क्षेत्र में बीजेपी ने जरूर लास्ट काउंटिंग तक कड़ी टक्कर दी।