आखिरकार राजभर की विदाई

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री व सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर को बीते सोमवार बर्खास्त कर दिया। इसी के साथ उनके मंत्रियों की भी आयोगों-निगमों से छुट्टी कर दी गयी। इधर कई वर्षों में योगी मंत्रिमंडल में रहे ओमप्रकाश राजभर की वजह से योगी सरकार की कई बार फजीहत भी हुई। इन वर्षों में राजभर का आचरण सहयोगी जैसा बिल्कुल ही नहीं रहा। शुरुआती दिनों में ही एक मसले पर गाजीपुर के डीएम को हटाने के लिए उन्होंने धरना भी दिया। जिसकी तब बड़ी चर्चा हुई और तभी से लगने लगा था कि राजभर लम्बे समय तक यूपी में एनडीए का हिस्सा नहीं रह पाएंगे। बाद के दिनों में तो उनके ऐसे बयान भी सामने आए जो योगी सरकार की मंशा के विपरीत रहे। फिर भी उन्हें भाजपा बर्दाश्त करती रही।

उनके व्यवहार को लेकर विपक्ष भी खूब चटखारे लेता रहा। भाजपा के भीतर भी यह मांग उठती रही थी कि राजभर पर सगत कार्रवाई की जानी चाहिए। शायद भाजपा इसलिए संकोच में थी कि यूपी में राजभरों को तो नाराज नहीं करना चाहती थी। उन परिस्थितियों में तो बिल्कुल भी नहीं जब सपा- बसपा और रालोद की तरफ से 2019 के आम चुनाव में बड़ी चुनौती मिल रही थी। इसीलिए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की तरफ से किसी तरह के सगत ऐक्शन की मनाही थी। पर आखिरी दिनों में सीटों की मांग को लेकर रिश्ता इतना तल्ख हो गया कि यूपी में 35 जगहों से राजभर ने अपने उम्मीदवार उतार दिए। सीधे-सीधे भाजपा के खिलाफ मुखर हो गए। नतीजतन उन पर कार्रवाई के अलावा शायद और कोई विकल्प शेष नहीं रह गया था।

चुनाव के समापन का इंतजार था और योगी ने गोरखपुर से ही उनकी बर्खास्तगी के लिए राज्यपाल से सिफारिश कर दी। भाजपा ने अनिल राजभर के रूप में राजभर मतों को बचाये रखने का इंतजाम करते हुए यह सख्त कदम उठाया है। अब तो एक्जिट पोल के नतीजे भी भाजपा के पक्ष में हैं और 23 मई को नतीजों में इसकी झलक दिखी तो जाहिर है पार्टी महागठबंधन के दलित-यादव और मुस्लिम वोट बैंक की चुनौतियों से निपटने वाली पार्टी के तौर पर उभरेगी। यूपी में 49 फीसदी वोट बैंक में जहां दलित-अति पिछड़ा और सवर्ण हैं जिस पर संघ की मदद से भाजपा एक अरसे से कार्य करती रही है।

एक्जिट पोल के नतीजों में यूपी से भाजपा को बड़ी चुनौती मिलती नहीं दिखी है जिसकी पूर्व के सर्वेक्षणों में चर्चा प्रमुखता से थी। वैसे 23 मई के नतीजे बताएंगे यूपी में महागठबंधन से भाजपा को कितनी बड़ी चुनौती मिली है। फिलहाल तो फील गुड जैसा माहौल है। हालांकि सपा-बसपा के नेताओं में खलबली है। ईवीएम हैकिंग के सवाल उठाये जा रहे हैं। पूर्वांचल के कुछ हिस्सों से ईवीएम को लेकर स्थानीय नेताओं के बीच मची अफरा-तफरी की सूचनाएं भी वायरल हुई हैं। दिल्ली में तो विपक्ष 23 मई के नतीजों से पहले ईवीएम को लेकर चुनाव आयोग की चौखट पर फिर पहुंच गया है।

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