अमेरिका : पर उपदेश कुशल बहुतेरे

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अमेरिकी विदेश विभाग की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ विशेषकर मुस्लिमों पर उग्र हिन्दू समूहों द्वारा भीड़ के हमले 2018 में भी जारी रहे और सरकार इन हमलों पर कार्रवाई करने में विफल रही है। बतौर रिपोर्ट, देश में कम से कम 24 राज्य में गोवध पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध हैं, जो अधिकतर मुसलमानों और अन्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को प्रभावित करता है। कठुआ मामले का उदाहरण देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमलों में कानून प्रवर्तनकार्मियों पर शामिल होने के आरोप थे। 10 जनवरी को जम्मू-कश्मीर पुलिस को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने 8 वर्षीय बालिका के अपहरण , सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में 4 पुलिसकर्मियों सहित 8 लोगों को गिरफ्तार किया था।

आखिर अमेरिका को भारत की छवि धूमिल करने का साहस किसने दिया? भारत में 130 करोड़ से अधिक जनसंख्या बसती है, जिसमें मुस्लिम आबादी 20 करोड़ है, तो ईसाई 2.8 करोड़। यदि विश्व में सार्वाधिक आपराधिक घटनाओं की बात करें, तो जनसंख्या के संदर्भ में भारत में औसतन 100 आपराधिक मामले सामने आते है, जिसमें विभिन्न समुदाय के लोग शामिल होते है। वर्ष 2014 में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाग उनके विरोधियों (राजनीतिक, वैचारिक और व्यक्तिगत) द्वारा देश में एक विकृत्ति विमर्श स्थापित करने का प्रयास हुआ है, उसमें किसी भी श्रेणी के अपराध का शिकार यगि कोई हिन्दू है और उसमें अपराधी मुस्लिम या फिर किसी अन्य समुदाय से संबंध रखता है, तो वह देश स्वघोषित सेकुलरिस्ट, वाम-उदारवादी और टुकड़े-टुकड़े गैंग के लिए सामान्य आपराधिक घटना बन जाती है।

यदि स्थिति प्रतिकूल हो – जिसमें अपराध का शिकार मुस्लिम और अपराधी हिन्दू हो, तो इस जमात के लिए देश के मुस्लिम खतरे में नजर आने लगते है। नारों में भारत को मुस्लिम विरोधी घोषित कर दिया जाता है। विशेष बुद्धिजीवी पुरस्कार वापस करने लगते है। पीड़ित परिवार के घर सांत्वना जताने के लिए नेताओं की भीड़ जुट जाती है और उनपर पैसों और उपहारों की बरसात कर दी जाती है। पिछले पांच वर्षों में मो. अखलाक, जुनैद, पहूल खान आदि मामला ऐसा ही घटनाक्रम देखनों को मिला है, जिसमें भाजपा/संघ विरोध के लिए देश की सनातन संस्कृति और उसकी जीवंत बहुलतावादी परंपरा तक को शेष विश्व में कलंकित करने में कोई कमी नहीं छोड़ी गई है। यदि वाम-उत्तरवादियों और स्वयंभू बुद्धिजीवियों के आरोपों को आधार बनाया जाएं, तो क्या अखलाक, जुनैद, पहुल खान या फिर तबरेज आदि की हत्या उनके मुस्लिम होने के कारण हुई है? यदि वाकई ऐसा होता तो क्या इन प्रत्येक मामलों में मृतक के अन्य सहभागियों और परिजनों आदि को भी नुकसान नहीं पहुंचाया जाता? क्या ऐसा हुआ? नहीं।

देश में मुस्लिमों की स्थिति क्या है? क्या यह सत्य नहीं कि उन्हें बहुसंख्यकों की भांति समान संवैधानिक अधिकार और कुछ मामलों में अधिक स्वतंत्रता प्राप्त है? क्या यह स्तय नहीं कि स्वतंत्रता के समय देश में मुस्लिम आबादी, जो 4 करोड़ ङी नहीं होती थी, वह आज 20 करोड़ हो गई है? क्या अमेरिका ने अपनी तथाकथित रिपोर्ट में इन तथ्यों का संज्ञान लिया? भारतीय विदेश मंत्रालय ने जहां इस रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया है, वही सत्तारुढ़ भाजपा इसे मोदी सरकार और दल के प्रति पूर्वाग्रह से प्रेरित बता रही है। क्या यह सत्य नहीं कि इन अधिकतर मामलों में स्थानीय विवाद और आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का हाथ हा है? क्या बतौर प्रधानमंत्री, नरेन्द्र मोदी ने संसदीय संबोधन सहित कई अवसरों पर इस प्रकार की हिंसक घटनाओं की निंदा करते हुए सार्वजिक रूप से विधिसम्मत सख्त कार्रवाई करने की बात नहीं की है? इस पृष्ठभूमि में विश्व के सबसे समृद्ध, प्रगतिशील और विकसित राष्ट्रों में से एक अमेरिका की स्थिति क्या है?

यह किसी विडंबना से कम नहीं कि मानवाधिकार हनन के लिए भारत पर उंगली उठानेवाले ट्रंप प्रशासन ने अपने देश में हो रहे मानवाधिकार हनन और नस्लीय हिंसा का संज्ञान तक नहीं लिया है। अमेरिकी खुफिया जांच एजेंसी एफबीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2007 में हिन्दुओं, सिखों और मुस्लिमों के खिलाफ अपराधों सहित 6,000 से अधिक घृणा अपराध दर्ज किए गए, जोकि वर्ष 2015 की तुलना में 5 प्रतिशत, तो वर्ष 2014 के मुकाबले 10 प्रतिशत अधिक है। बात केवल ट्रंप प्रशासन तक सीमित नहीं है। विगत दो दश्कों में मानवाधिकारों को लेकर अमेरिका का रवैया रसातल में रहा है। ग्वांतानामो जेल, जहां कैदियों से अमेरिकी अधिकारियों का व्यवहार सोवियत संघ के वामपंथी तानाशाह जोसेफ स्टालिन से कम क्रुरुर नहीं था। भारत में जब भी किसी पर अत्याचार होता है चाहे वह अल्पसंख्यक ही क्यों न हो- सभ्य समाज इसकी घोर निंदा करता है और आरोपी न्यायिक प्रकिया से गुजरता है। इसके विपरीत आज भी अमेरिका में अधिकांश अश्वेतों-विशेषकर अफ्रीकी मूल के अमेरिकी नागरीक को इसके सत्ता-अधिष्ठान द्वारा प्रताड़ित ही किया जाता है।

बलबीर पुंज
लेखक भाजपा से जुड़े हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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