कल के दिन पाकिस्तान की सांस अधर में लटकी हुई थी। यदि पेरिस स्थित वित्तीय कार्रवाई टास्क फोर्स एफएटीएफ कल पाकिस्तान को उसकी भूरी सूची में से निकालकर काली सूची में डाल देती तो उसकी नय्या डूब जाती। काली सूची में आने का अर्थ है, वह अंतरराष्ट्रीय अछूत बन जाए।
पाकिस्तान पर यह ठप्पा लग जाता और वह ईरान और उत्तर कोरिया की श्रेणी में चला जाता। उसकी आर्थिक घेराबंदी हो जाती। दुनिया के देश उसकी आर्थिक मदद नहीं कर पाते। उसका हुक्का-पानी बंद हो जाता। पाकिस्तान का आरोप है कि इस काम के लिए भारत ने अपना पूरा जोर लगा रखा है। कल पेरिस में हुई बैठक में एफएटीएफ ने पाकिस्तान को काली सूची में तो नहीं डाला है लेकिन उसे भूरी सूची से भी बाहर नहीं निकाला है।
उसे पिछले साल यह चेतावनी दी गई थी लेकिन लाख दावे करने के बावजूद अभी तक इमरान-सरकार अपने आतंकवादी संगठनों और उनके वित्तीय स्त्रोतों को काबू नहीं कर सकी है। अब उसे फरवरी 2020 तक एक मौका और दिया गया है। उसे जून 2018 में 27 सूत्री योजना दी गई थी। लेकिन अभी तक 15 माह बीत जाने के बावजूद वह सिर्फ 5 मुद्दों पर कार्रवाई कर सका है।
पाकिस्तानी सरकार चुप नहीं बैठी है। उसने आतंकवादी संगठनों के खिलाफ कई कदम उठाए हैं। उनके बैंक-खाते सील कर दिए हैं, उनके दफ्तरों से उन्हें बेदखल कर दिया है और उनके कुछ सरगनाओं को जेल में भी डाल दिया है लेकिन उक्त वित्तीय संगठन के सदस्य पाकिस्तानी सरकार की कार्रवाई से पूर्ण संतुष्ट नहीं हैं। इस संगठन का अध्यक्ष आजकल चीन है। चीन इस आड़े वक्त में पाकिस्तान के खूब काम आया है।
अगर चीन की जगह कोई और राष्ट्र होता तो पाकिस्तान पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता लेकिन अब भी पाकिस्तान को आतंकवाद के विरुद्ध अपनी कमर कस लेनी चाहिए वरना अगले साल फरवरी में उसे कोई नहीं बचा पाएगा, चीन भी नहीं। यहां लंदन में कुछ पाकिस्तानी दोस्तों ने मुझसे कहा कि जब तक पाकिस्तान को बाहरी मदद बंद नहीं होगी, वह अपने पांव पर खड़ा ही नहीं होगा।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह उनके निजी विचार हैं