अफवाहों से कमजोर होती है सियासत

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एक तरफ योगी सरकार ने साफ कर दिया है कि कानून व्यवस्था को बिगाडऩे वालों को बशा नहीं जायेगा, दूसरी तरफ विपक्ष सिर्फ निराशाजनक तस्वीर पेश करने को ही विरोध और सत्ता में वापसी का रास्ता मान बैठा है। अभी पिछले दिनों बारिश से यूपी के कई जिलों में खड़ी फ सलें बर्बाद हो गयी, सरकार ने तेजी दिखाते हुए क्षति आकलन और त्वरित मुआवजे की रकम पीडि़त किसानों तक पहुंचाने का फरमान जारी किया, कुछ जगहों पर यह अमल में होते पाया भी गया लेकिन राज्य में पैर जमाने की कोशिश में जुटी कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा ने अपने ट्विटर पर तबाही की एक फोटो अपलोड की जो सर्च किए जाने पर पाकिस्तान की निकली। सवाल सही हो तो घेरना विपक्ष के रूप में बहुत जरूरी है इससे एक तरह का दबाव बना रहता है पर उतावलेपन में नहीं होना चाहिए इससे गंभीरता खत्म होती और जनता के बीच विश्वास भी कम होता है। वैसे यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति देश भर में विपक्ष की बन गयी है। जितना घेरते हैं उतना घिरते चले जाते हैं। नागरिकता संशोधन कानून पर आखिरकार यही हुआ। राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने कपिल सिब्बल के यह कहने पर कि नागरिकता कानून से देश में किसी की भी नागरिकता नहीं जाने वाली है को रेखांकित करते हुए पूरे विपक्ष को ही गुमराह करने वाला साबित कर दिया।

जिस एनपीआर को लेकर भी सवाल खड़े किये जा रहे थे कि जानकारी पूरी न दे पाने अथवा छुपाने पर उस शस को डाउटफुल कटेगरी में रख दिया जायेगा और सिटीजन रजिस्टर बनने पर उसका नाम दर्ज नहीं होगा इस आधार पर विरोध हो रहा है। हालांकि इसको लेकर कई बार खुद पीएम नरेंद्र मोदी साफ कर चुके हैं कि रजिस्टर के बारे अभी कोई विचार तक केबिनेट में नहीं है। तब इस पर जोर देने का क्या मतलब। एक प्रायोजित मुगालते ने देश में कानून व्यवस्था की जो गति की सो एक तरफ, इसमें अरबों की सार्वजनिक और निजी संपत्ति खाक हुई तथा दर्जनों जाने गयी उसका क्या? कौन लेगा इसकी जिम्मेदारी यह बड़ा नैतिक सवाल है। विपक्ष की बात का वजन सत्ता पक्ष से किसी मायने में कम नहीं होती। लोग यकीन करते हैं और सत्ता पक्ष से निराश होने की स्थिति में विकल्प के रूप में भी देखते हैं इसलिए नापतौल कर बोलने की उनसे अपेक्षा स्वाभाविक है। देश की सबसे पुरानी पार्टी से तो ऐसी उम्मीद नहीं हो सकती। कहते है कि गलत बात भी जब लोगों में बैठ जाती है तब उसे बाहर निकाल पाना मुश्किल हो जाता है। वक्त बीतने के साथ झूठ सच जैसा लगने लगता है इसे कई स्थानों पर चल रहे धरने रूप में देखा जा सकता है। देश के सामने कई सवाल है -आर्थिक चुनौतियां पूरे सामाजिक परिवेश को बदरंग करने को तैयार लगती हैं।

देश विरोधी ताकतें सदैव ऐसे ही वक्त सामाजिक ताने-बाने को बिगाडऩे की फिराक में रहती हैं। ऐसे कठिन समय में विपक्ष की रचनात्मक भूमिका अपरिहार्य हो जाती है। समस्याओं से निपटने के सुझाव सामने आने चाहिए भले ही जो सत्ता में है गौर न करे लेकिन जनता सब देखती-समझती है। राजनीति के अवसर तो आगे भी मिलते रहेंगे। जो सत्ता में होता है उससे गलतियां भी होती हैं। अब कोरोना एक अप्रत्याशित चुनौती बनकर देश के सामने है। पीएम ने इसे आपदा के रूप में लिया है। 58 सेंटर इसके लिए खोले जा चुके हैं। राज्य सरकारें अपने यहां इसे चुनौती की तरह ले रही हैं। दवा तो फिलहाल इसकी कोई है नहीं शुरुआती जांच और एहतियात ही एक रास्ता है। लोग पैनिक न हों। मास्क सेनिटाइजर का इस्तेमाल करें इसी पर मोदी सरकार ज्यादा जोर दे रही है। विदेशों में भारतीय दूतावासों की भूमिका इस मामले में सराही भी जा रही है। खास तौर पर इटली का उदाहरण दिया सकता है किस तरह दूसरे देशों के नागरिकों को भी पहले जांच फिर एयरलिट की कोशिश हो रही है। खुद पीएम ने सार्क देशों को एक साथ आने का आह्वान किया जिसका पाकिस्तान ने भी समर्थन किया है। पर देश के भीतर राहुल गांधी को लगता है यह सरकार भारतीयों को उनके हाल पर छोड़ रही है।

यह वक्त भय नहीं, निपटने का हौसला देने का है। यह जरूर कहा जा सकता है कि इतनी बड़ी आबादी वाले देश में अभी और किया जाना चाहिए। पर बिलकुल किसी को सिर्फ सियासत के लिए खारिज कर देना समझ से परे है। यह सही है कि निजी और राजनीतिक तौर पर राहुल गांधी को बड़ा नुकसान हुआ है। बचपन से जिसकी स्कूलिंग एक साथ हुई, यह बात और राजनीति में माधवराव सिंधिया के आकस्मिक अवसान के बाद ज्योतिरादित्य की इंट्री राहुल गांधी से पहले हुई पर दोस्ती अटूट रही है इसीलिए उन्हें लगता है सिंधिया देर-सवेर लौट आएंगे। पिछली लोकसभा में राहुल गांधी के सिंधिया बगलगीर होते थे वो कमी उनके चेहरे से बयान भी होती है। पर यह तो राजनीति है। उतार- चढ़ाव होता रहता है। सियासत के लिए भी मौके पर नजर रखनी होती है। भारतीय राजनीति के मौजूदा काल-खंड में यह धीरता चुक रही है इसी का नतीजा है कि दुनिया के तमाम अखबारों में यहां के नेताओं की वजह से चर्चा होती है। राष्ट्र से जुड़े मसलों पर एकजुट दिखना चाहिए। यह परिपाटी बनी रहे सबके लिए अच्छा है। सत्ता का चक्र तो घूमता रहेगा आज किसी की बारी और कल किसी और की।

प्रमोद कुमार सिंह
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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