अपनी ही राख से फिर जन्म लेती भाजपा

0
579

यहां फीनिक्स को समझने के लिए इतिहास में जाना होगा। इतिहास बताता है फीनिक्स (ककनूस) से अपने आप को पहचानने वाली नस्ल ने अपना नाम फीनिशियन रखा था। ककनूस बार-बार अपनी ही राख में से जन्म लेता है। मनुष्यों की जिस नस्ल ने विनाश में से गुजर सकने की अपनी शक्ति हो पहचाना, अपना नाम जल मरने वाले और अपनी ही राख में से फिर पैदा होने वाले ककनूस से जोड़ लिया। यह फीनिक्स सूरज की पूजा से संबंधित है।

कहा जा सकता है कि जीरो से दो, दो से 80 अब लगातार दूसरी बार अकेले के दम पर पूर्ण बहुमत प्राप्त करना भाजपा के लिए फीनिक्स की तरह खुद की ही राख में से फिर जन्म लेने जैसा है। यहां फीनिक्स को समझने के लिए इतिहास में जाना होगा। इतिहास बताता है फीनिक्स (ककनूस) से अपने आप को पहचानने वाली नस्ल ने अपना नाम फीनिशियन रखा था। ककनूस बार-बार अपनी ही राख में से जन्म लेता है। मनुष्यों की जिस नस्ल ने विनाश में से गुजर सकने की अपनी शक्ति हो पहचाना, अपना नाम जल मरने वाले और अपनी ही राख में से फिर पैदा होने वाले ककनूस से जोड़ लिया। यह फीनिक्स सूरज की पूजा से संबंधित है। सूजर जो रोड डूबता है और जोर चढ़ता है, और ये फीनिशियंस, जिसका उदम ल्खव आज तक इतिबहास ज्ञात नहीं, यद्दपि इनके संबंध समर और हिन्दुस्तान से पाए जाते हैं। ये सदा सूरज की पूजा करते थे।

ओन सूरज का एक नाम था, इसीलिए फीनिशियंस ने जब यूरोप में नई धरती की खोज की, उसका नाम एल-ओन-डोन-रखा, जो आज लंदन है। इजराइल के जब बारहों कबीले बिखर गए थे, प्रतीत होता है कि उनमें से कुछ लोग फीनिशियंस से जा मिले थे, क्योंकि शब्द ‘इंग्लैंड’ की जड़ें हिब्रू भाषा में है। जोजफ कबीले का चिह्न बैल होता था। बैल के लिए हिब्रू भाषा में एंगल शब्द है। नई खोजी हुई धरती को उन लोगों ने एंगल- लैंड नाम दिया, जो आज इंग्लैंड है। इन खयालों का इतिहास से केवल इतना संबंध है कि उस नस्ल फ़ीनिक्स से भाजपा का संबंध जोडऩा मुझे बड़ा पहचाना हुआ लगता है। फीनिशियंस नस्ल को हम अपनी भाषा में क कनूसी नस्ल कह सक ते हैं। दरअसल ककनूस एकक ल्पित पक्षी का नाम है जो बड़ा, लंबी चोंच वाला होता है। इसकी चोंच में छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। कहते हैं ककनूस पक्षी चील के समान लम्बा-चौड़ा होता है।

इसके पंख चमकीले, किरमिची और सुनहरे होते हैं। इसके स्वर में संगीत होता है, और यह सदा एक ही, अकेला होता है। इसकी आयु कम से म पांच सौ बरस होती है। कुछ इतिहासकार इसकी आयु एक हजार चार सौ बरस बताते है इसकी आयु का अनुमान सत्तानवे हजार दो सौ वर्ष भी है। इसकी आयु जब शेष होने लगती है, यह सुगंधित वृक्षों की टहनियां इकठ्ठाा करके एक घोंसला बनाता है और उसमें बैठकर गाता है। तब इसकी चोंच के छिद्रों से चिंगारियां निकलती हैं। यही चिंगारियां वहां इकट्ठा लकडिय़ों से मिलकर आग बन जाती हैं और यह घोंसले सहित उसमें जल जाता है। इसकी राख में से एक नया ककनूस जन्म लेता है। जो सारी सुगंधित राख को समेटकर सूरज के मंदिर की ओर जाता है, और वह राख सूरज के सामने चढ़ा देता है। कुछ इतिहासकार इसकी मृत्यु का वर्णन इस प्रकार करते हैं कि जब इसे जीवन के अंतिम समय के आने का आभास हो जाता है, यह स्वयं उडक़र सूरज के मंदिर में पहुंच जाता है और पूजा की आग में बैठ जाता है। यह जब आग में बिल्कुल राख हो जाता है, तो इसकी राख में से नया ककनूस जन्म लेता है।

मिस्र के पुरातन इतिहास में इस पक्षी का घर उधर बताया जाता है, जिधर सूरज उदय होता है। इसलिए इतिहासकार इस पक्षी का मूल स्थान अरब या हिंदुस्तान मानते है। हिन्दुस्तान का अधिक, क्योंकि सुगंधित वृक्षों की टहनियां हिन्दुस्तान की भूमि के साथ जुड़ती हैं। लैटिन के एक कवि ने ककनूस को रोमन राज्य से जोड़ा है। कुछ पादरियों ने इसे क्राइस्ट की मृत्यु और उनके पुनर्जीवित होने की कहानी से जोड़ा है और कुछ लोग इसे क्वारी मां की कोख से जन्मे क्राइस्ट के जन्म से जोड़ते हैं, पर हम इसे सच्चे, संघर्षशील व्यक्ति या संगठन से जोड़ सकते हैं, चाहे वह किसी जाति, धर्म या देश का हो! कुछ लोग कहते हैं यह पक्षी जब अपने पूरे यौवन पर होता है, खुद ही लकडिय़ां इकठ्ठा करता है और इन लकडिय़ों के ढेर पर बैठकर सुंदर स्वर लहरियां छेड़ता है।

उसकी चोंच के छिद्रों से चिन्गारियां फूटती हैं। इन चिन्गारियों से लकड़ियां, जिन पर वह बैठा होता है, आग पकड़ लेती हैं और यह ककनूस वही जलकर राख हो जाता है। फिर जब वापस की पहली बूंद इस राख के ढेर पर पड़ती है तो अपनी ही राख में से एक नया ककनूस जन्मता है। भाजपा का उद्गम और विस्तार भी कुछ ऐसा ही है। क हा जा सक ता है कि भाजपा भी क क नूसी नस्ल की है। सबसे पहले अटल जी ने इसे जीया। फिर आडवाणी।… और अब नरेंद्र मोदी। क हा जा सक ता है कि तीन पुनर्जन्म हो चुके हैं। इस जन्म में शायद लंबी उम्र लिखी है। संघर्ष के दो कार्यकाल सामने हैं और तीसरा इंतज़ार में। किसी ने नहीं सोचा था कि कश्मीर से कन्या कुमारी तक हर खेत की मिट्टी में रची-बसी कांग्रेस का इतनी जल्दी, ऐसा पराभव देखने को मिलेगा! भाजपा के लंबे संघर्ष और उसकी टीम ने कांग्रेस को बहुत जल्दी सिमटने को विवश कर दिया। जिस देशव्यापी पार्टी का अध्यक्ष ही एक सीट से हार जाए, उसकी लोक प्रियता या नकारात्मक लोक प्रियता का अंदाजा सहजता से लगाया जा सकता है।

नवनीत गुर्जर
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here